आओ तुम बहार बन के आओ
साहिल मझधार का बन के आओ
जीवन है मेरी गंध बिना
सुगन्धित फूल बन के आओ
अर्थहीन मेरी जिन्दगी में
मधुर संगीत बन के आओ
धरती है मेरी छाया बिना
नीला आकाश बन के आओ
दिल है मेरा धड़कन बिना
मधुर स्पंदन बन के आओ
सावन की फुहार बन के आओ
आओ तुम बहार बन के आओ...
-दीपक कुमार दीपांशु
सिंघेश्वर
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