आज की इस भागदौर भरी जिंदगी में यह उक्ति असहज ही मालूम पड़ती है की चिंता छोड़ केवल मुस्कराओ ही, क्योंकि आज हर आदमी इतना व्यस्त हो गया है की उस के पास खुद के लिए भी समय नहीं ही . हर कोई किसी न किसी परेशानी से जूझ रहा है. लेकिन सिर्फ चिंता करने से कोई हल तो नहीं मिल जाता है जब तक की इंसान कोई कर्म नहीं करे.
चिंता क्या है ? चिंता आदमी को खोखला करने वाला वह कीड़ा है जो अन्दर ही अन्दर इंसान को खा जाता है, मतलब इंसान को और भी ज्यादा चिन्ताओ के चक्रव्यूह में फंसा देता है. चिंता कर खुद को हतोत्साहित करना और किसी कार्य को करने का हौसला न रहना, यह नकारात्मक चिंता है. चिंता का अर्थ इरादे से होता है. चिंता का अर्थ यह नहीं की खुद को परेशान करो.जहाँ तक बात चिंता छोड़ केवल मुस्कराने की है तो जो चिंता बुलंद इरादों और अपने मार्गदर्शन के लिए करते है, उनके चहरे पर सहज ही एक मुस्कान बिखरी रहती है. जो हमेशा मुस्कराते हो उन में आत्मविश्वास की कमी कभी नहीं होती है."वाल्टेयर ने भी अपने शब्दों में कहा है - प्रसन्न और मधुर व्यक्ति सदैव सफल होता है." कोई जरुरी नहीं की चिन्ताओ को छोड़कर ही व्यक्ति मुस्करा सकता है, बल्कि चिंता तो उनके इरादे को और भी प्रोत्साहित कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है.
हम युवाओं को ही लें जिन्हें हर मोड़ पर कम्पिटिशन का ही सामना करना पड़ता है. ऐसे में युवा सिर्फ चिंता करकर के खुद का आत्मविश्वास ख़त्म कर लेते है की अगर यह कम्पिटिशन देने जाऊंगा / जाऊंगी तो वहां बहुत सारे ऐसे कम्पिटिटर होंगे जो मुझ से भी कही ज्यादा अनुभवी होंगे. अगर इसकी जगह
युवा अपना मन पक्का कर यह चिंता करे की उन्हें और क्या-क्या पढ़ना और जानकारी हासिल करनी चाहिए ताकि वे कम्पिटिशन में शीर्ष स्थान प्राप्त कर सकें तो उन के अन्दर आत्मविश्वास आएगा. मैंने चिंता के दो पहलुओं को अंकित किया है पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक और युवाओं की ऐसी सोँच, चिंता का सकारात्मक पहलू है. सकारात्मक चिंता हर मुश्किल में भी हमें मुस्कराहट ही देती है.मुस्कान तो वह दवा है जो सारी चिंताओं को चुटकी में हल कर देती है. इसलिए क्यों न हम चिंता को चिंतन अर्थात अभ्यास, बुलंद इरादे और आत्मविश्वास में परिवर्तित कर मुस्कराहट को चहरे पर सजा कर रखे.
युवा अपना मन पक्का कर यह चिंता करे की उन्हें और क्या-क्या पढ़ना और जानकारी हासिल करनी चाहिए ताकि वे कम्पिटिशन में शीर्ष स्थान प्राप्त कर सकें तो उन के अन्दर आत्मविश्वास आएगा. मैंने चिंता के दो पहलुओं को अंकित किया है पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक और युवाओं की ऐसी सोँच, चिंता का सकारात्मक पहलू है. सकारात्मक चिंता हर मुश्किल में भी हमें मुस्कराहट ही देती है.मुस्कान तो वह दवा है जो सारी चिंताओं को चुटकी में हल कर देती है. इसलिए क्यों न हम चिंता को चिंतन अर्थात अभ्यास, बुलंद इरादे और आत्मविश्वास में परिवर्तित कर मुस्कराहट को चहरे पर सजा कर रखे.
अंत में मैं बस यही कहना चाहती हूँ कि चिंतारहित जीवन आज है कहाँ ? वास्तव में चिंता नहीं तो जीवन जीने का उद्देश्य ही क्या रह जायेगा, लेकिन चिंता के साथ जो मुस्कराएं वही सही जीवन जीता है. इसलिए जीवन में यह फार्मूला कि "चिंता छोड़ केवल मुस्कराओं ही" कुछ एक जगहों पर लागू हो सकता है, हमेशा नहीं.
--विद्या गुप्ता, मधेपुरा
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