जवान होती कुंवारी दलित किशोरी को बाग में बकरी चराते देखा ठाकुर रमापति सिंह
ने. थोड़ा पास आये. चश्मे के लेंस को ब्रासलेट धोती के कोर से साफ़ किया और तनिक रोब
ज़माने के नदाज में फरमाया—
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जवान और सुन्दर होकर बाहर निकलती हो, शर्म नहीं आती !
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और आपकी जवान बेटी लवली तो रोज शहर जाती है, कॉलेज में
पढ़ने, अकेले.
हाथ में डंडे को जरा मजबूती से हवा में लहराते हुए
जवाबा उस दलित-बाला ने.
-डा० रामलखन सिंह यादव
अपर जिला
जज, मधेपुरा.
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