रात को जगना छोड़ दे
खुद-ब-खुद...
नींद आ जायेगी तुम्हें
मुझे सोचना छोड़ दे.
चाँद की चाँदनी
तो पड़ेगी जमीन पर
तू उसे झांकना छोड़ दे
सावन की काली घटा में
मोरनी के संग नाचना छोड़ दे.
वफ़ा-बेवफा की कशिश को
कसक में ढालना सीख ले
रस्मों-रिवाजों की चादर बिछी है
तू उसे ओढ़ना सीख ले.
प्यार का है दुश्मन सारा जहां
तू मुझे भूलना सीख ले.
सोच के मेरी अदा को
तनहाई में मुस्कुराना छोड़ दे
ठुकरा के मेरी मुहब्बत को अब
ए यार ! तू जीना सीख ले....
-श्रुति भारती ‘लवली’
मधेपुरा.
very nice....??