किसी खुले पार्क में अकेला बच्चा , खोया खोया सा - किसी अज्ञात भय से ज्यों ऊँगली पकड़ता है और एक मीठी सी मुस्कान लिए
पूछता है - 'आप कौन हैं ? मेरी दोस्त बनेंगी, मेरे साथ खेलेंगी ....' प्रीति मुझे इसी तरह मिली . माध्यम तो ब्लॉग ही था , दोस्त बने ऑरकुट पर .
दोस्तों की भरमार थी, हर खासियत से पूर्ण होकर भी उसे लगता वह खाली है , उसे तलाश थी और आश्चर्य यह तलाश ख़त्म हुई , जब वह मुझसे बात करने
लगी . रिश्ते जो होते हैं , उन्हें बनाये नहीं जाते , उसे एक नाम दिया जाता है . उसने भी मुझे एक नाम दिया .....
मैंने देखा है नज़र लगते , इसलिए ज़िक्र क्या - हाँ , उसने मुझे बहुत सम्मान दिया , उसकी प्रतिभा ने मेरी सोच में रंग भरे - मैं जो सोच समझती , उसे हुबहू वह पेश कर
देती . इतनी प्रतिभाशाली होकर भी वह डगमगाती दिखती . कभी नाराज़ होकर , कभी प्यार से मैंने
उसको उसका असली रूप दिखाया , जिसे जानकर भी वह अनजान थी.
बहुत जल्दी रूठ जाती है, पर उतनी ही जल्दी मान जाती है - किसी के चाहने भर की देर है, वह 'तथास्तु ' बन जाती है , बदले में सिर्फ एक कतरा
स्नेह का चाहती है.
प्रीति लिखती है, प्रीति डिजाईन बनाती है, प्रीति बहुत अच्छी पेंटिंग करना जानती है, प्रीति नाराज़ होकर भी नाराज़ नहीं होती ....
बस कभी कभी बुद्धू सी हो जाती है और ढेरों सवाल करती है मुझसे , फिर अंत में हंसने लगती है , क्योंकि उसके सवालों का
हल मैं हूँ .
अब प्रीति को प्रीति के शब्दों में जानें .........
और कहिये , है न कमाल की लड़की , थोड़ी थोड़ी धूप थोड़ी थोड़ी छाँव सी -
२३ जनवरी १९७४ सूरत, गुजरात में मेरा जन्म हुआ, चूँकि पापा डॉक्टर है और
बुरहानपुर(म.प्र.) में रहते है तो लालन पालन वही हुआ
… पापा बनाना चाहते थे डॉक्टर, पर हम science के period में भी drawing ही किया करते थे .. हा हा
हा, सो हमने जैसे तैसे 12th science के साथ और Collage commerce विषय से ख़तम किया … मुंबई से Fashion design, Computer
Multimedia किया और Arena Multimedia में Tutor बन गयी … १९९९ में शादी के बाद
सूरत आ गयी, और Tanay (पति) को graphic designing में मदद करने लगी … २००१ में हमारी जिंदगी में आई "मलक”, जी हाँ मेरी नन्ही प्यारी si बेटी मलक … २००२ में Jewellery designing का diploma भी किया और उसमें काम किया … आज कल पति के Print &
Packaging business में साथ देती हूँ, और साथ साथ बच्चो के drawing क्लास भी चलती
हूँ …!
आप् लोग सोचते होंगे ब्लोगेर का परिचय है और यहाँ तो एसी कोई बात ही नहीं आई, हाः तो सुनिए - लिखने का शौख कब
हुआ याद नहीं पर हा पढने का शौख बचपन से ही था, ब्लॉग बनाने का आईडिया और
आग्रह जबलपुर के “श्री गिरीश बिल्लोरे जी” से मिला और बन गए हम भी ब्लॉगर … सोचा कुछ नए ढंग से ब्लॉग बनाऊं , तो हमने हर रचना को एक designer card के रूप में पोस्ट किया ब्लॉग पर … बस और तो क्या कहूँ ....
कौन हूँ मैं ?
एक अनसुलझी पहेली सी ,
या - किसी की सहेली सी हूँ मैं ?
रागिनी लिए मौन वार्तालाप सी ,
या - सात सुरों के आलाप सी हूँ मैं ...
बलखाती हवा सी ,
या - दरिया के लहरों सी हूँ मैं ?
जिंदगी की राह में गुमनाम सी ,
या - अपनी अलग पहचान सी हूँ मैं ?
हौसलों से पस्त , ध्वस्त सी ,
या - समर्थ , सशक्त सी हूँ मैं ?
सबके लिए मान – अपमान सी ,
या - अपने आप् में सम्मान सी हूँ मैं ?
कौन हूँ मैं ?
क्या - प्रेम, प्यार, एहसासों का पर्याय "प्रीति" सी हूँ मैं ? …
--प्रस्तुति: रश्मि प्रभा, पटना.
(http://sameekshaamerikalamse.blogspot.in/)
(http://sameekshaamerikalamse.blogspot.in/)
बहुत प्यार भरी दोस्ती आपकी ............ मेरी भी प्रीती से . सच में दिल की अमीर प्रीती जब दोस्ती करती हैं तो निभाती भी हैं . . सिर्फ लिखने में ही नही किचन हो या बागबानी . शिल्प हो या सेवा . हर क्षेत्र में सबके साथ . सबको महत्त्व देने वाली . मैं अभी रूबरू तो नही मिली हूँ परन्तु जल्दी ही मिलना होगा इसकी पूरी उम्मीद हैं :)) इश्वेर से आपके कल्याण के लिये प्रार्थनाये
जिंदगी की राह में गुमनाम सी ,
या - अपनी अलग पहचान सी हूँ मैं ?
bahut khub