और करता हूँ चाकरी
कविता की
करता हूँ चौका बर्तन
झाडू-बहारू
रोपता हूँ फूल-पत्तियां
लगाता हूँ उद्यान
सौंपता हूँ उसे दिल-दिमाग
शौर्य-पराक्रम
सपने सारे के सारे
करता हूँ इतना ज्यादा प्रेम
कि अक्सर सहमी,
सशंकित आँखों से
देखती है कविता मुझे
(चर्चित पुस्तक 'राजधानी में एक उजबेक लड़की' से )
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
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