चटक रंगों के से सजी धरा
धीरज को तोड़ रही है
मन में सरसों से
पीले-पीले प्यास जग रहे
पीले-पीले प्यास जग रहे
जीवन के मधुमास में
कोई मिलने आये
कोई मिलने आये
उस यामनि के अभिमान में
मधुर पंखुडियों ने शबनम से
गलबहियां कर
गलबहियां कर
गर्व से फूले गेहूँ के
बाली को ललकारा है
बाली को ललकारा है
चने के चमक ने उसके
हरे
रंग में गुलाल घुलाय
मघई पान सरीखे
होंठों पर गुलाब से लाली छाई
उसके काँटों ने कानाफूसी की
कहर बरपाते रातरानी ने
खुद
को कहीं छुपा लिया..
डॉ०
सुनीता
सहायक प्रोफ़ेसर, हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली.
सहायक प्रोफ़ेसर, हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली.
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