भागलपुर के दंगों की भयावह त्रासदी. हफ़्तों का
कर्फ्यू और लाशों के ढेर पर लगी गोभी की ताजी नई फसल. राजनीति की हलचल.
रात के
गहरे अँधेरे में लालटेन लिए कुदाल से खोद-खोद कर अपने दो जवान बेटों का शव खोज रहे
हैं- बूढ़े रहीम बख्श. कांपते हाथ, हिलती गर्दन और बहती अश्रु-धार. इसी बीच कुदाल
और टॉर्च लिए श्रीराम सिंह का प्रवेश. सावधानीपूर्वक एक-एक कदम रखते हुए.
कौन है,
सकपकाए बूढ़े शेख ने पूछा.
मैं
श्रीराम सिंह ! रामपुर वाले.
यहाँ
क्या करने आये हैं, अब क्या शेष बचा है ?
आपकी ही
तरह अपने अभागे भाइयों का शव खोजने जो धर्मान्धता की शिकार दंगाई भीड़ के बन गए.
उसकी
जाति क्या थी ?
आदमी-मानव.
जवाबा श्रीराम ने.
और धर्म
?
मानव-धर्म,
मानवता, भाईचारा.
तब यह
जाति-धर्म के नाम पर तांडव कैसा ?
फिर
पूछा बूढ़े अशक्त शेख ने. ये राम-रहीम कौन ???
डॉ० रामलखन सिंह यादव,
प्रथम अपर
जिला जज, मधेपुरा.
एक टिप्पणी भेजें