ढह गए बाँध, तुम नहीं आए.
बिछते-बिछते तुम्हारी राहों में
थक गई आँख, तुम नहीं आए.
नाम ले-ले तेरा हवाओं में
चुक गई हांक, तुम नहीं आए.
तेरी चाहत जफ़ा से घिरकर
बन गई फांस, तुम नहीं आए.
तेरी खुशबू की तमन्ना करते
थम गई सांस, तुम नहीं आए.
-डॉ० शांति यादव, प्राचार्या
एस.एन.पी.एम.हाई स्कूल
मधेपुरा
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