मेरे हिस्से की धूप
सरस दरबारी का ब्लॉग ..... लेखन में अभिव्यक्तियाँ सिर्फ करवटें नहीं बदलतीं, प्यार मिले तो आम दिनचर्या भी ख़ास हो जाती है
कुछ यूँ ----
रश्मि प्रभा
मैं नारी हूँ .....
मुझे गर्व है की मैं एक औरत हूँ ....
अपने घर की धुरी ....
दिन की पहली घंटी आवाहन करती है मेरा -
मेहरी आयी है ...
"अरे सुनती हो ...चाय ले आओ "
पतिदेव की बेड टी ..
"बहू नाश्ता ..ठीक ८ बजकर २० मिनिट पर चाहिए "
"माँ...टिफ़िन...स्कूल को देर हो रही है "
"अरे सुनो ऑफिस का समय हो रहा है "
"बीबीजी ...दूध ले लीजिये .."
"सब्जीईईइ........."
सब्ज़ीवाले की पुकार !
इस बीच थोड़े थोड़े अंतराल पर बजती टेलेफोन की घंटी ..
"बहू खाना तैयार है ....?"
"माँ भूख लगी "....स्कूल से लौटे बच्चे
"क्यों चाय नहीं पिलाओगी "
...दफ्तर से लौटे पतिदेव
"रात के खाने में क्या है "
"बहू खाना लगाओ "
"सुनो थोड़ी देर मेरे पास भी बैठ जाओ "
"माँ भूख लगी है "
चौका समेटा-
दिन ख़त्म...!!!
१० हाथ हैं मेरे ....
क्या यह पुरुषों के लिए संभव है ....?
तभी तो कहती हूँ
अपने घर की धुरी हूँ मैं ...!!!!!
प.स. बीमार पड़ने की तो कहीं गुंजाइश ही नहीं.....!!!!!!!
एक दम सही कहा ...हर नारी के मन की बात
तहे दिल से आभार रश्मिजी ...:)