'महिला - दिवस' एक वेश्या की नज़र से ....
देर रात ....
शराब पीकर लौटी है रात
चेहरे पर पीड़ा के गहरे निशां
मुट्ठियों में सुराख
.चाँद के चेहरे पर भी
थोड़ी कालिमा है आज
उसके पाँव लड़खड़ाये
आँखों से दो बूंद हथेली पे उतर आये
भूख, गरीबी और मज़बूरी की मार ने
देह की समाधि पर ला
खड़ा कर दिया था उसे
वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के खरोचों के निसां
और हँस देती है ...
आज महिला दिवस है .....
shakt rachna abhivaykti....
यथार्थ चित्रण
शुभकामनायें !!
कितना सटीक व्यंग्य, महिला दिवस का इससे अधिक उपहास हो bhi क्या सकता हाई? मन को झकझोर गयी यह रचना.......