कल रविवार महाशिवरात्रि के रोज त्रिवेणीगंज में ‘कविवर भारती भूषण
तारानंदन तरुण जयंती समारोह’ में कोसी क्षेत्र के रचनाकारों
का साहित्यिक समागम हुआ। कार्यकम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ
साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने कहा कि कोसी
सदृश्य नदियाँ कलमकारों को प्रेरणा देती है।
बाढ़ व सुखाड़ जैसी त्रासदी से ही रचनाकारों का जनम
होता है। कविवर तरुण ने इन त्रासदियों को देखा व झेला था। जैसे सोना तप
कर निखरता है वैसे तरुण जी अपनी लेखनी के माध्यम से सामने आये थे। उन्होंने इस
इलाके से साहित्यिक पत्रिका ‘क्षणदा’ का प्रकाशित कर क्षेत्र का बड़ा
उपकार किया..।
दरभंगा से प्रकाशित
दैनिक
‘मिथिला
आवाज’
के
संपादक अरविन्द ठाकुर ने कहा कि विराट व्यक्तित्व किसी की निजी नहीं बल्कि
समाज की सम्पत्ति बन जाता है। तरुण जी समाज की सम्पत्ति बन चुके है। उनके
कर्ज को चुकाने का दायित्व समस्त समाज का है।
गज़लकार शांति यादव
ने कहा कि तरुण जी ने जो आत्मसंघर्ष एवं जिजीविषा से कार्य किया है उसी तरह नई
पीढ़ी को भी करना होगा।
भूपेन्द्र ना. यादव ‘मधेपुरी’ ने कहा कि मार्च का
महीना क्रांतिकारियों का महीना होता है..। दशरथ सिंह
ने कवि तरुण की स्मृतियों को सहेजने की बात कही। अन्य वक्ताओं में डा.
सिद्धेश्वर काश्यप, महेन्द्र नारायण ‘पंकज’ आदि थे। कार्यक्रम का उद्घाटन
करते हुए डा. आर सी पी यादव ने आरंभ में कहा कि हिन्दी साहित्य के
पुनर्मूल्यांकण की जरूरत है, नये मानक खोजने होंगे.. तरुण जी उसी मानक को
ताउम्र खोजते रहे। डा. अरुण कुमार ने कवि तरुण के कृतित्व एवं
व्यक्तित्व को रेखांकित किया।
समारोह के द्वितीय
सत्र
में
कवि सम्मेलन का आगाज डा. शांति यादव की गजल से हुआ। कवि हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने - ‘यह कोसी तट बंशी वट
है,
ग्राम्य
किशोरी को पनघट है.. कविता का सस्वर पाठ कर वातावरण में
ताजगी भर दी।
अररिया से आये शायर
हारुण
रशीद
‘गाफिल’ ने कहा कि - ‘हवाओं को मैंने कहानी
सुना दी,
/ बड़े
शोक से अपनी दुनिया लुटा दी / जिसे पहली फुर्सत
में मैंने दुआ दी / उसी ने मुझे सबसे पहले सजा दी /
अगर साथ चलने की हिम्मत नहीं थी/ तो फिर क्यों मुहब्वत की आंधी चला दी।
सहरसा से आयी शायरा रियाज़ बानू फातमी ने
कहा - ‘गुजिस्ता साल भयानक
था बेटियों के लिए...। कवि दशरथ सिंह ने कविता
पाठ करते हुए कहा कि - ...एक समुन्दर ने आवाज दी, मुझको पानी पिला
दिजीए..। कवि अरविन्द ठाकुर ने कहा कि - अदम की बाग का पता मत दे, जिगर की आग को हवा मत
दे...। अन्य कवियों में डा. विनय चैधरी, डा. शचीन्द्र महतो, अरविन्द श्रीवास्तव
ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया। कार्यक्रम का संचालन
प्रथम सत्र में विश्वनाथ सराफ एवं द्वितीय सत्र में अरुणाभ ने किया।
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