हँसता रहता है
यहाँ हम हैं सब कुछ
यहाँ हम हैं सब कुछ
खोकर भी बेअसर
भूत भविष्य वर्तमान यहाँ तक कि
उसी हंसी में खो जाती है
भूत भविष्य वर्तमान यहाँ तक कि
उसी हंसी में खो जाती है
अपनी भी पहचान
यह देख कर वह करता है
यह देख कर वह करता है
और जोर से
अट्टहास
बा आवाज़, बा आवाज़, बा आवाज़..
अब तो भीतर बाहर है
बा आवाज़, बा आवाज़, बा आवाज़..
अब तो भीतर बाहर है
उसी हंसी में
सराबोर
भेद रही है खा रही है
भेद रही है खा रही है
चोट करती है वो
हंसी ......
कोई तो है
....कोई तो है ......
डॉ सुधा उपाध्याय, नई दिल्ली
अब तो भीतर बाहर है
उसी हंसी में सराबोर
भेद रही है खा रही है
चोट करती है वो हंसी ......
कोई तो है ....कोई तो है----man ko chhuti huai rachna--badhai