प्रतिबिम्ब सा अद्वैत नज़ारा
खोये हुए नयन
कुंठित मन
गहरे पल ख्वाब अधूरा रहा
तलाशती अंखिया
बरस पड़ी
अपाहिज मन की व्यथा
बेबसी हथेलियों में
मन चीत्कार उठे
दूरी असहनीय
फिर भी नजाकत में नूर
मिलन को चाँद से चकोर
जल रहे चाँद की चांदनी में !!



जानवी अग्रवाल, कोलकाता
4 Responses
  1. वाह वाह वाह अद्भुत प्रस्तुति |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page


  2. AMIT CHANDRA Says:

    Jaanvi Julee Agrawal -

    दिल को छु ली आपकी ये रचना !
    जितनी तारीफ की जाए हैं ........ वो कम ही होगा .!
    आपकी सोच और आपकी रचना को सलाम .... !!

    आशा करते हैं की आपकी और भी बेहतरीन रचना हमलोगों को पढने को मिले ... !

    धन्यावाद ... जानवी जी ....


  3. उत्कृष्ट कविता .. काफी लम्बे अंतराल के बाद आपकी रचना मधेपुरा टाइम्स पे आई है सबसे पहले ढ़ेर सारी बधाई !!

    गहरे पल शीर्षक की कविता काफी गहरा वियोग भाव से ओत प्रोत है पढ़कर काफी अच्छा लगा और लेखनी की गहराई का मान भी हुआ ! उम्मीद करता हूँ की आप फिर से जल्द ही हम सब को अपनी अगली रचना से रुबरु कराएँगे !!


  4. अजय ठाकुर जी, तुषार जी और अमित भाई आप सब को मेरा तहेदिल से आभार .. आपलोगों के होंसला अबजाही जरुर मेरे अगले रचना में दिखेगी ..


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