यहाँ आदमियों की बस्ती में
हर आदमी परेशां है
हिन्दुओं की बस्ती में
मुसलमान परेशां हैं
मुसलामनों की बस्ती में
हिन्दू परेशां हैं
शियाओं की बस्ती में
सुन्नी परेशां हैं
सुन्नियों की बस्ती में
शिया परेशां हैं
हिन्दुओं की बस्ती में खुद
हिन्दू परेशां हैं
अगड़ों की बस्ती में
पिछड़े परेशां हैं
पिछड़ों की बस्ती में
दलित परेशान हैं
दलितों की बस्ती में
आदिवासी परेशां हैं
आदिवासियों की बस्ती में
जानवर परेशां हैं
मजबूत अगड़ों की बस्ती में
कमजोर अगड़े परेशां हैं
पिछड़ों की बस्ती में
पिछड़े भी परेशां हैं
दलितों की बस्ती में
दलित भी परेशां हैं
आदिवासियों की बस्ती में
आदिवासी भी परेशां हैं
मर्दों की बस्ती में
महिलाएं परेशां हैं
महिलाओं की बस्ती में
आदमी परेशां हैं
आदमियों की बस्ती में
जानवर परेशां है
जानवरों की बस्ती में
आदमी परेशां हैं
कौन
किसके बस्ती में
नहीं परेशां है
यहाँ आदमी ही शिकारी है
और आदमी ही शिकार है
आदमियों की बस्ती में
हर आदमी परेशां है.
हर आदमी परेशां है
हिन्दुओं की बस्ती में
मुसलमान परेशां हैं
मुसलामनों की बस्ती में
हिन्दू परेशां हैं
शियाओं की बस्ती में
सुन्नी परेशां हैं
सुन्नियों की बस्ती में
शिया परेशां हैं
हिन्दुओं की बस्ती में खुद
हिन्दू परेशां हैं
अगड़ों की बस्ती में
पिछड़े परेशां हैं
पिछड़ों की बस्ती में
दलित परेशान हैं
दलितों की बस्ती में
आदिवासी परेशां हैं
आदिवासियों की बस्ती में
जानवर परेशां हैं
मजबूत अगड़ों की बस्ती में
कमजोर अगड़े परेशां हैं
पिछड़ों की बस्ती में
पिछड़े भी परेशां हैं
दलितों की बस्ती में
दलित भी परेशां हैं
आदिवासियों की बस्ती में
आदिवासी भी परेशां हैं
मर्दों की बस्ती में
महिलाएं परेशां हैं
महिलाओं की बस्ती में
आदमी परेशां हैं
आदमियों की बस्ती में
जानवर परेशां है
जानवरों की बस्ती में
आदमी परेशां हैं
कौन
किसके बस्ती में
नहीं परेशां है
यहाँ आदमी ही शिकारी है
और आदमी ही शिकार है
आदमियों की बस्ती में
हर आदमी परेशां है.
डॉ० रमेश यादव, नई दिल्ली
आदमी ने सब कुछ बदल दिया.मिट्टी,पानी,हवा और सभी को अपने जैसा बना दिया.
झूठा,मक्कार,षड्यंत्रकारी,धर्म,जाति,क्षेत्र,अपना,पराया,भाई-भतीजावाद.
यहाँ तक की आदमी ही आदमी का दुश्मन भी बन बैठा.कैसे--
पढ़िए इस कविता को और जानिए...!
"
सम्मानित डॉ.रमेश जी! अति सुन्दर आप लिखते हैं, मेरी प्रिय कवियित्री सम्मानित डॉ.सुनीता जी, के साझा करने से, आपको शब्दों से रूबरू होने का अवसर मिलता रहता है! आप यूँ ही लिखते रहें, ऐसी मेरी मंगल-कामना है, संग संग ही आपको भी नव दिवस की शुभ-कामना,
आपका दिवस मंगलमय हो, आपके स्वप्न पूर्ण हों,
प्रकृति आपको हर सुख दे, ऐसी मेरी कामना है!"
"
दमन हो रहा मानवता का, चटक रहे सम्बन्ध!
अब मानव के रक्त से आती, बारूदों की गंध!"
रमेश भैया, बधाई, इस बहुत उम्दे स्तर के रचना हेतु ,
इस परेशानी का हल क्या है?
रमेश भैया, बधाई, इस बहुत उम्दे स्तर के रचना हेतु ,
इस परेशानी का हल क्या है?
मैं भी इसका हिस्सा बनना चाहता हूँ
आदमी ने सब कुछ बदल दिया.मिट्टी,पानी,हवा और सभी को अपने जैसा बना दिया.
झूठा,मक्कार,षड्यंत्रकारी,धर्म,जाति,क्षेत्र,अपना,पराया,भाई-भतीजावाद.
यहाँ तक की आदमी ही आदमी का दुश्मन भी बन बैठा.कैसे--
पढ़िए...
इस कविता को और जानिए...!
इसे प्रकाशित करने का साहस सम्माननीय श्री राकेश भाई ही कर सकते थे,सो कर दिखाए.
इसे बहस के मंच तक लाने और नई दिशा देने में मधेपुरा एक बेहतरीन माध्यम है.बनकर उभरा है...
१. सम्माननीय चेतन जी !
"दमन हो रहा मानवता का, चटक रहे सम्बन्ध!
अब मानव के रक्त से आती, बारूदों की गंध!" इस पंक्ति से हम सहमत हैं...
२. भाई श्री संतोष जी !
वैसे तो जनवाद ही एक मात्र विकल्प और हल दिख रहा है...
३. श्री सुधीर जी !
हम तो हमेश चाहेंगे आप हिस्सा बनें...
नाम के रिश्ते नाते हैं
आदमी* आदमी को मजबूर
****गोप****
यहाँ आदमी ही शिकारी है
और आदमी ही शिकार है
आदमियों की बस्ती में
हर आदमी परेशां है.bahut sahi,aaj to yahi ho raha hai
sateek rachna badhai