सब कुछ मिला इस जिन्दगी से
पर मिली न मुझको जिन्दगी,
भूल गये आज वो हीं हमें
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
अब हार गया मेरा अंतर्मन
सूना सूना लग रहा है गगन,
अब बची है बस उनकी बन्दगी
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
तड़पता रहूँ या फिर मर जाऊ
जीनी तो है अपनी
जिन्दगी,
अपने लिए न सही उनके लिए
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
चूर हुए सरे सपने उनके
फिर किस काम की ये जिन्दगी,
करूँ बार बार उनका नमन
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
इरादा नहीं बतलाने का ये
मुझपे क्या है अब बीत रही,
उनका तो एहसान है मुझपर
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
कितने अच्छे थे वो दिन
जब खेल रही थी ये जिन्दगी,
हुई खता और वो रूठ गये
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
हर बात पर अब ठोकर लगती है
जिन्दगी खुद की जोकर लगती है,
कैसे क़र्ज़ अदा करू मैं अब उनका
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
इक बार हस दे वो मेरी बातों पर
फिर खिल जाएगी ये जिन्दगी,
मैं तो माटी भर उनके चरणों का
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
साँस आ रही है और जा रही है
पर घुट रही है ये जिन्दगी ,
उनकी जगह भगवान से ऊपर
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी,
हर पल आएँगी बेदर्द आंधियाँ
पर लड़ जाएगी ये जिन्दगी,
बस आशीष काफी उन अपनों का
जिन्होंने मुझे दी ये जिन्दगी..
कुन्दन मिश्रा
संतनगर,सहरसा
मोबाइल- 07696003582
बहुत सुन्दर रचना | आभार
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धन्यवाद तुषार साहब....