रहता हूँ सब के
साथ पर
खुद से खुद को
दूर पाता हूँ,
देख बुराईयों को खुद को
देख बुराईयों को खुद को
उस से दूर करता
हूँ,
तो !
खुद से खुद ही दूर हो जाता हूँ ;
ढूंढ़ता हूँ पहचान खुद की
तो !
खुद से खुद ही दूर हो जाता हूँ ;
ढूंढ़ता हूँ पहचान खुद की
खुद तो कभी!
खुद ही खुद की
खुद ही खुद की
पहचान बन जाता
हूँ ,
आँख खुली हैं पर मैं अंधेरे में
आँख खुली हैं पर मैं अंधेरे में
डूबा चला जाता
हूँ ,
खुद से खुद को दूर पाता हूँ ,
तंग आ गया हूँ !
इस भीड़ में खुद से खुद को ही
खुद से खुद को दूर पाता हूँ ,
तंग आ गया हूँ !
इस भीड़ में खुद से खुद को ही
नहीं पहचान पाता
हूँ
खुद से खुद को दूर पाता हूँ.
खुद से खुद को दूर पाता हूँ.
-आर्य गुरु मंगलम,
वार्ड नं-4 मधेपुरा
एक टिप्पणी भेजें