थाली में सलाद न हो और गोद में अपनी औलाद न हो तो जिंदगी
बेमजा कट जाती है.
भोज-ज्योनार
की मर्यादा और जायका गाजर-मूली के कंधें टिकती है जिस प्रकार आये दिन अख़बार की
सुर्खियाँ हत्या-बलात्कार की घटना होती है.
पता नहीं,
गाजर
और मूली की पैदावार की हर्षदी सोच मेरी जटिल खोपड़ी में किस मुहूर्त में पैदा हुई.
गाजर की बुआई और कमाई से उत्साहित होकर मैंने मूली की जबर्दस्त खेप बाजार में
खपाने की तैयारी की जिस प्रकार हमारा प्यारा पड़ोसी पाकिस्तान हमें परेशान कर अब
तालिबानी भूत से अमेरिका को डरा रहा है.
एफ.डी.आई जैसी
खोपड़ी में मल्टी सोच पैदा होती है. लागत कम और मुनाफा ज्यादा का फंडा बताकर मैंने
पिताजी को पटा लिया. मूली और मक्का की संयुक्त बुआई कर मुद्रा मोचन का मूल-मंत्र जपने
लगे. जिस प्रकार प्रत्याशी सब्जबाग दिखाकर वोटर को सतरंगी दुनिया की सैर कराते हैं.
मूली की फसल
की निडाई-गुड़ाई-पटवन हमने तन-मन-धन से ठीक वैसे ही
किया जिसप्रकार शिक्षक-प्रत्याशी नियोजन के चक्कर में पंचायत प्रखंड और जिलों के
चप्पे-चप्पे को नाप कर भी
खुशफहमी में जीते हैं. खाद-पानी का संग रंग
लाया. मक्का की प्रगति बैलगाड़ी और मूली की रेलगाड़ी सी होने लगी.
मैंने
प्रारंभ में ही पिताजी को आगाह किया था की मूली का विकास शुद्ध भ्रष्टाचारी की तरह
होता है, इसे सतर्क हो कर समय पर ही सलटाने में अपनी
भलाई है, लेकिन पिताजी मेरी नेक सलाह की उपेक्षा उसी
प्रकार कर दी जिस प्रकार 'खुफिया सुचना'
पाकर
भी भारतीय रक्षा विभाग कान में तेल डालकर हादसा होने तक निश्चिंत रहता है.
किसी कार्य
से मुझे दो सप्ताह बाहर जाना पड़ा. लौटा तो मूली की मुटाई और
उसका बाजार भाव का आकलन कर मैंने अपना सर पीट लिया. नाराजगी पर संयम का लिहाफ
डालकर मैंने पिताजी की खिंचाई की, मूली सी मोटी कन्या पाकर वर जिस प्रकार बिदकता है
वही सलूक ग्राहकगण अब मूली के साथ करेगा.
लाचार
मनमोहन सा मुखड़ा लिए पिताजी ने मुझे पुचकारा, ‘बेटा किसी तरह
समस्या का समाधान ढूंढो.’ मैंने टका सा जबाब दिया-‘पापा प्यारे इसे
आढत तक पहुंचने में अब करोड़ों की बोफोर्स दलाली की जाँच में गठित अरबों खर्च वाला
आयोग की-सी होगी.
दूसरे दिन मैंने
घूम-घूमकर गाँव में मुफ्त में मूली प्राप्त करने का ऑफर दिया. उसी दिन मेरी आधा
एकड़ की फसल मूली जमीन से तलाक़ ले ली. दूर रिश्ते के मामा ने मुझे लताड़ा, ‘अहमक, मुफ्त में
यों मूली तुमने क्योँ लुटाई ?’ मैंने भेद भरे स्वर में कहा, ‘मामूजान ! पिताजी
की लापरवाही से ये दिन देखना पड़ा. मूली ने जमीन का सारा खून पी लिया. आज मैंने
बिना मजदूरी दिये अपने खेत की सफाई करवाकर मक्का का भविष्य सुरक्षित कर दिया. जहाँ
अतिगरीब गंवारजन यज्ञ के नाम पर कर्ज लेकर खर्च करतें हैं और लोग लोग-बाग खाकर खाद
बना देते फिर भी यज्ञकर्ता की बुराई पानी-पी-पीकर करते है, लेकिन मैंने थोडा खर्च
कर बड़ा यज्ञ कर दिया. अब यश मुझे टोकरा भरकर सालों-साल मिलेगा.
स्वार्थ की
ओट में परमार्थ का पक्ष सुनकर उन्होंने मुझे सियार की संज्ञा से नवाजा और यह भी
जोड़ा-
“हारे को हरिनाम और
लाचारी का नाम महात्मा गाँधी.”
कथित मामा की व्यंगभरी शाबासी मुझे ऐसी लगी जैसी बेचारी
बलत्कृत बाला (अब स्वर्गीय) दामिनी की बेहतर चिकित्सीय सेवा हेतु सिंगापूर भेजने
का सरकारी सत्प्रयास की खिचाई विपक्ष और मीडियावालों ने की.
पी.बिहारी ‘बेधड़क’
कटाक्ष कुटीर, महाराजगंज
मधेपुरा
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