हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक
इस टूटे फूटे जिंदगी को
एक बज्र बना मेरे मालिक
सजेह सकू ख्वाबों के
मुझे अर्श बना मेरे मालिक
इस टूटे फूटे जिंदगी को
एक बज्र बना मेरे मालिक
सजेह सकू ख्वाबों के
बिखड़े अवसादों को
एक हश्र बना मेरे मालिक,
हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक,
साँझ का अँधेरा बहुत देखा मैंने
अब एक सूर्य बना मेरे मालिक
धीमे धीमे जीवन के
एक हश्र बना मेरे मालिक,
हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक,
साँझ का अँधेरा बहुत देखा मैंने
अब एक सूर्य बना मेरे मालिक
धीमे धीमे जीवन के
चलते चहल कदमी
को
एक धारा उग्र बना मेरे मालिक,
हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक,
फर्श पे पड़े धूल समझते हैं
एक धारा उग्र बना मेरे मालिक,
हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक,
फर्श पे पड़े धूल समझते हैं
ये दुनिया वाले
मेरे निर्धन अछूत वाजुदों को
इसको एक कर्ण बना मेरे मालिक,
भेद सकू जीवन पथ के
मेरे निर्धन अछूत वाजुदों को
इसको एक कर्ण बना मेरे मालिक,
भेद सकू जीवन पथ के
हर चक्रव्यूह को
ऐसा मेरे सीने पे
ऐसा मेरे सीने पे
एक मर्म लगा मेरे
मालिक,
हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक.
हूँ अश्क मैं
मुझे अर्श बना मेरे मालिक.
-अजय ठाकुर,
मधेपुरा.
एक टिप्पणी भेजें