टूटती क्यों नहीं तुम्हारी तन्द्रा
किस ख्वाब में कटती है तुम्हारी रातें ?
किस उम्मीद पर जिए जा रही हो पल-पल
दूर बहुत है तुम्हारी मकसदे मंजिल
तुम्हे फतह करना है
तुम्हे लड़ना है ।
तुम्हे लड़ना है, क्योंकि
तुम्हे लिखना है एक इतिहास
मिटाना है,
पूर्वजों की खींची गई लकीर,
साफ़ करना है
रूढ़ीवादी विचार
तलवार की धार की तरह
लगाती है  तुम्हारी बातें,
सुबह आने से पहले काटनी है, अँधेरी रातें
हर क्षण, हर पल
जीकर मरना है,
मर-मर कर जीना है,
तुम्हे लड़ना है ।
लड़कर ही पास लाओगी तुम वो मंजिल
जो दूर है,
कंटीली, पथरीली, उष्णता से लथपथ है पथ,
बटमारो, चाटुकारों , मक्कारों से भरा है पथ,
अपनों का परायापन है,
विचारों का नयापन है,
भोथरे धार से लड़ना है जंग,
भूखे-प्यासे भी जिन्दा रखो, अपना उमंग
कुछ भी हो, अब विजय वरण करना है
तुम्हे लड़ना है । तुम्हे लड़ना है ।।


विद्या गुप्ता
तकनीकी विभाग (टेलीफोनी)
मधेपुरा.
3 Responses
  1. आज एक नहीं,दो नहीं - कई स्त्रियों ने कलम से अपनी सोच की लकीरें बनायीं
    प्रश्न,प्रलाप,गुहार,हिकारत .................. यही है आज के दिवस की यानि महिला दिवस की सार्थकता


  2. Vidya Gupta Says:

    रश्मि प्रभा जी आपने बिलकुल सही कहा, आपके टिप्पणी के लिए धन्यवाद् और साथ ही महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाये :)


  3. Prem Prakash Says:

    प्रेरणादायी


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