दुश्वारियाँ
मेरे सफ़र की ..कोई नही जाने
जिसे भी मन में जो आया, बना डाले वो अफ़साने। ।
जिसे भी मन में जो आया, बना डाले वो अफ़साने। ।
रंग-ए
-सियासत देख कर, हैरान
हैं हम भी
वतन
की फ़िक्र में ये दिल मेरा, लगा है घबराने। ।
अपने
इस गुलिस्तां को आओ सींच दें ..फिर से .
सारे
फूल-पत्ते,
कलियाँ
..अब लगे हैं मुरझाने । ।
इरादे
साफ जाहिर हैं ...हमारे हुक्मरानों के ...
जहाँ
खुलने थे स्कूल वहाँ खुल रहे हैं 'मयखाने ' । ।
जब
राह चलो अच्छी ..तो हरदम सुनो खुद की ...
बहुत
से लोग आयेंगे तुम्हें ..बेकार समझाने ......। ।
जरा
सी बात पर ताली ...जरा सी बात पर गाली ...
किसी
को मापने के, यहाँ ..बड़े छिछले हैं
पैमाने ..। ।
रचना भारतीय, मधेपुरा
इरादे साफ जाहिर हैं ...हमारे हुक्मरानों के ...
जहाँ खुलने थे स्कूल वहाँ खुल रहे हैं 'मयखाने 'vartman kasch ujagar karti rachna badhai