एक
स्त्री के बगैर
पहेलियां
चक्कर काट रही थी
रसोई
के इर्द-गिर्द
एक
टुकड़ा बादल था
आंखों
में
डब्बे
में बंद समुद्र
देह
में दिनचर्या भर लहू
धुंधला
चांद
पत्ते
ज़र्द
बसंत
का खौफ
उत्स
में पराजय के किस्से
कविताएं
नितांत अपनी
मौलिकता
से कोसो दूर.. !
अरविन्द श्रीवास्तव
कला
कुटीर,
अशेष
मार्ग,
मधेपुरा
मोबाइल-
9431080862.
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