ठोंक-ठोंक के ताल ।
होली के हुड़दंग में,
सबके चेहरे लाल ।।
दुश्मन भी जब सामने मिलता,
हाथ में लिए गुलाल।
होली के हुड़दंग में,
सबके चेहरे लाल ।।
खेलो कभी न खून की होली,
होगा तुम्हे मलाल।
होली के हुड़दंग में,
सबके चेहरे लाल ।।
रंग बचा न रंग के अंदर,
गुब्बारे भी फूट गये।
गुजिया, पापड़, दहीबड़े भी,
कब के पीछे छूट
गये।।
सरकारें भी रोज़ दिखाती,
महगाई के रंग।
क्या कोई कुछ खा पाएगा,
कीमत देख के दंग।।
मँहगाई की मार है इतनी,
जीना किया मुहाल।
होली के हुड़दंग में,
सबके चेहरे लाल ।।
कवि आदेश अग्रवाल ‘प्रकाश’
ऋषिकेश (उत्तराखंड)
bahut khud....is kavita me holi ki shubhkamnao ke saath ek message bhi hai...so gyus read it and enjoy.....
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