अर्थ भरने के लिए कहाँ से सृजित करोगे पक्ष
कहने को बहुत कुछ है तुम्हारे पास
श्रोताओं के कान ही खत्म हो गए
तो किसको सुनाओगे अपनी बात
नहीं सुनना एक ‘डिफेन्सिव’ अस्त्र है
जिसका प्रयोग वे समय आने पर करते हैं
कुशलतापूर्वक साधारण जनों को
अपनी बात सुनाने के लिए
बीमारी को अस्त्र बनाना कोई उनसे सीखे
पड़ जाते हैं हम सरीखे
उनके लिए सहानुभूति के जाल में
किसी को कुछ कह भी नहीं पाते
कान के मन को समझो
तो समझ पाओगे मन उनका
राजर्षि अरूण
मधेपुरा
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