आज सच्चिदानंद
हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय 'की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए .......क्यूँ न कविता पर कविता की ही
बात की जाए ..
बात की जाए ..
........कविता तो
ऐसी ही बात होती है
नहीं तो लयबद्ध बहुत सी खुराफात होती है
ऐसी ही बात
दिल फोड़कर रहस्य से आती है
भीतर का जलता प्रकाश बाहर ले आती है ;
स्वयं फिर नहीं दिखती ,
..और सबकुछ
दिखाती है
उसी सब में कहीं
कवि को भी साथ लेकर
लय हो जाती है .........
उसी सब में कहीं
कवि को भी साथ लेकर
लय हो जाती है .........
'अज्ञेय '.........4
अप्रैल 2013......
अज्ञेय को याद
करते हुए
डॉ सुधा उपाध्याय, एसोसिएट प्रोफ़ेसर,
जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय.
और सबकुछ दिखाती है
उसी सब में कहीं
कवि को भी साथ लेकर
लय हो जाती है ......... 'अज्ञेय '...
उन्हें नमन
बहुत सार्थक और उत्कृष्ट प्रस्तुति
आज एक दोहा भी;
तलछट-तलछट छोड़ दे, गहरा पकडे बैठ
कविता हँसाती रुलाती, तू गहरे तो ,,बैठ !
प्रोफ, चेतन प्रकाश 'चेतन'