जिस मिट्टी की सोंधी गंध से
मह-मह करता है जनजीवन
उस सुपौल की पवन धरती को
है हमारा शत-शत नमन

अभिसिंचित जिसे करता है नित
पावन सलिला कोसी का हिमजल
संग पवन के है लहराता
हरित वसुंधरा का आँचल
आह्लादित जहाँ सदा रहते हैं
प्रसन्न वेदना जड़ व चेतन
उस सुपौल की पावन धरती को
है हमारा शत-शत नमन

करते रहे हैं अतीत काल से
जहाँ लेखक-कवि नव सर्जन
होती है जहाँ संगीत से नित
माता सरस्वती का अर्चन
जहाँ सुर-ताल की युगलबंदी से
सांध्य-प्रात: का होता अभिनन्दन
उस सुपौल की पावन धरती को
है हमारा शत-शत नमन

आजादी के दीवानों ने दी है
जिस धरती पर हँस कर कुर्बानी
मातृभूमि की बलिवेदी पर
लुटा दी अपनी अनमोल जवानी
नभ में तिरंगा फहर-फहर कर
करता है वीरों का अभिनन्दन
उस सुपौल की पावन धरती को
है हमारा शत-शत नमन

जहाँ हर गाँव-बस्ती में जीवंत है
अदम्य जीजीविषा की अमर कथा
जहाँ लोग हँस कर सह लेते हैं
अति कष्टदायी विषम विपदा-व्यथा
श्रम पसीने से चमकता है सदा
हर किसी का घर व आँगन
उस सुपौल की पावन धरती को
है हमारा शत-शत नमन




मोहन प्रसाद
उप-विकास आयुक्त
सुपौल (बिहार)
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