तुम ही मेरी रहीं प्रेरणा
तुम ही हो प्रेरणा का श्रोत
देख लूँ तुमको सपने में भी
दिल हो जाये ओत-प्रोत.
एक जमाना वो भी क्या था
दो जोड़ी कपडे और हम
कपड़े तो अब बहुत हो गए
साथ ही बढते गए हैं गम.
जब कुछ मेरे पास नहीं था
हर मुश्किल आसान थी
आज है मैंने पाया सब कुछ
तुम न हमारे पास थीं.
जीवन में ऐसा होता क्यों
सब कुछ साथ नहीं मिलता
जितना पाना चाहो जिसको
आगे को बढता रहता.
एक चाह न पूरी होती
दूजी पैदा हो जाती
इसी पकड़ने की कोशिश में
उम्र है सारी ढल जाती.
जो संचय आसानी से हो
उतने पैसे जोड़ लो
जीवन में संतोष है पाना
तो सब प्रभु पे छोड़ दो.
वक्त जरुरत पूरी होय
छोटी से हो छत सर पर
खाने का सामान हो घर
में,
कर्जा नहीं रहे घर पर.
कवि आदेश अग्रवाल प्रकाश
135-58, शिवा एनक्लेव, विकास कालोनी
ऋषिकेश- 249201, उत्तराखण्ड- भारत
मो0-09259964898
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