जी रही हूँ कड़वे घूँट पीकर
न मेरी राह में कांटे उगाइये
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
न मेरी राह में कांटे उगाइये
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
पराये मेरे दुःख पे आंसू बहा रहे हैं
मेरे जख्मों पे फिर भी मरहम लगा रहे हैं
जिन्हें पाल पोसकर नाम दिया अपना
मरघट में वो ही मुझे जला रहे हैं
बिलायती बहू के जख्मों से नहीं डरती मैं
अपनों की नजरों से मरती हूँ मैं
सामर्थ मिल रही मेरे पगों को फिर भी
हर तूफान से अकेले ही लड़ती हूँ मैं
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए.
राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी''
waha kay baat hai badhi ho rajander ji suder kavita ke pershtuti per. kavita samsamyki ke sath sath ek jwa jalant pershan lekar bhe aate hai ki kab milegee Aazadi naare jati ko .
pursh pardha samaaj ne sare kaidye kanuun apne hito, apne spuermashee wa unke purte hetu liker banye ... naaree to maater katputi bankar rahagaye hai iske haa me... bahut achee avhivyakti hai rajender jee... parashar gaur