वे  
जब आपसे मिलकर हँस रहे होते हैं 
समझिये
अन्दर से आपको फांसने की
तैयारी कर रहे होते हैं
वे
जब आप पर खुश हो रहे होते हैं 
उनके
अन्दर नाराज़गी की भट्ठी
भभक रही होती है
वे  
जिस समय आपकी तारीफ़
कर रहे होते हैं
ठीक उसी समय
अन्दर से षड्यंत्र कर रहे होते हैं
वे  
जब आपकी सफलता पर
आशीर्वाद दे रहे होते हैं
उसी दौरान
अन्दर से श्राप भी दे रहे होते हैं
वे  
जब बधाई दे रहे होते हैं
मान लीजिये
आपकी सफाई अभियान में लगे होते हैं
वे
जब सहयोग का वादा करते हैं
समझिये
असहयोग की जमीन
तैयार कर रहे होते हैं  
वे
जब आपकी प्रगति पर
प्रफुल्लित हो रहे होते हैं
कब्र खोदाई में भी लगे होते हैं
वे
जब आपका उपकार रहे होते हैं
समझिये
फुफकार रहे होते हैं
वे
हर मामले में अभिनय कर रहे होते हैं
हमें भ्रम होता है
सविनय
सब कुछ हमारे लिए कर रहे होते हैं 



डॉ रमेश यादव
सहायक प्रोफ़ेसर, इग्नू 
नई दिल्ली 

1 Response
  1. साथी राकेश जी !
    बहुत दिनों बाद मधेपुरा से ख़ुशी के भ्रम को तोड़े हैं...उन्हें बधाई और शुभकामनाएं !


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