स्कूल की जब होती छुट्टी
ऐसा लगता मानों बगीचे में उड़ रही हो
रंग -बिरंगी तितलियाँ ।
तुतलाहट भरी मीठी बोली से
पुकारती अपने पापा को
पापा ...
इतनी सारी नन्ही रंग -बिरंगी तितलियों में
ढूँढने लग जाती पिता की आंखे ।
मिलने पर उठा लेते मुझकों वे गोद में
तब ऐसा महसूस होता है
मानो दुनिया जीत ली हो
इस तरह रोज जीत लेते है मेरे पापा दुनिया ।
मेरी हर जिद को पूरी करते है पापा
मै जिद्दी भी इतनी नहीं हूँ
किन्तु जब मै रोती हूँ तो
पापा की आंखे रोती है ।
सच कहूँ ,यदि मै नहीं होती तो
मेरे पापा क्या जी पाते मेरे बिना
सोचती हूँ बेटियाँ नहीं होती तो
उनके पापा कैसे जीते होंगे ?
बेटी के बिना ।
ऐसा लगता मानों बगीचे में उड़ रही हो
रंग -बिरंगी तितलियाँ ।
तुतलाहट भरी मीठी बोली से
पुकारती अपने पापा को
पापा ...
इतनी सारी नन्ही रंग -बिरंगी तितलियों में
ढूँढने लग जाती पिता की आंखे ।
मिलने पर उठा लेते मुझकों वे गोद में
तब ऐसा महसूस होता है
मानो दुनिया जीत ली हो
इस तरह रोज जीत लेते है मेरे पापा दुनिया ।
मेरी हर जिद को पूरी करते है पापा
मै जिद्दी भी इतनी नहीं हूँ
किन्तु जब मै रोती हूँ तो
पापा की आंखे रोती है ।
सच कहूँ ,यदि मै नहीं होती तो
मेरे पापा क्या जी पाते मेरे बिना
सोचती हूँ बेटियाँ नहीं होती तो
उनके पापा कैसे जीते होंगे ?
बेटी के बिना ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
125 ,शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला - धार (म प्र )
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