साहब, एक बार सरकार ने स्टोरी खरीदने के लिए निविदा जारी की. मुझे लगा कि
अब मेरा जीवन बदलने वाला है. मेरे पास स्टोरी का बड़ा खजाना था. मैं सोचने लगा कि
अगर मैं निविदा भर दूं तो मेरी सारी स्टोरी बिक जाएगी और मैं भी अमीर कहानीकार बन
कर, कार पर घूमने-टहलने लगूंगा. मैं भी हवाई जहाज से हिंदी का अलख जगाने, स्थापित एवं प्रतिस्थापित साहित्यकारों जैसे, अश्लीलानंद बाघवेंद्र, कविराज और फुलवा की तरह विश्व हिंदी सम्मेलन
में जाऊंगा...और अंग्रेजी में बतियाऊंगा...हैप्पी हिंदी डे मनाऊंगा...साल में एक
दिन हिंदी में बोलूंगा- भाइयो एंड लेडिज, वी मस्ट स्पीक
हिंदी...मैं हिंदी में रॉक एंड रोल करूंगा...जीवन में कुछ हैप्पियां-मस्तियां मिल
जाएंगी...
साहब, मुझे बंजारे की तरह गांव-गांव, मुहल्ले-मुहल्ले पैदल
घूम कर स्टोरी सुनाने का लेबर नहीं करना पड़ेगा...मुझे लेबर पेन नहीं होगा! सरकार
मेरी स्टोरी की किताब छपवा कर, हर पढ़े-लिखे लोगों को मुफ्त में बांट कर, नाम कमाएगी और सरकारी पार्टी वाले वोट कमाएंगे...
साहब, मैंने ऐसा उत्तम सपना देख कर, चार सौ बीस रुपए में
निविदा का फॉर्म खरीदा...और…और
जब मैं निविदा भरने के लिए राज भाषा विभाग के कार्यालय में गया तो देखा कि मेरे
ऊपर दस मठाधीश टाइप के कहानीकारों ने बंदूक तान रखी है-
“तुम्हारी क्या बिसात कि
तू निविदा भरेगा...पचास पैसे में एक कहानी सुन लो...पचास पैसे में एक कहानी सुन लो,
की बोली लगाने वाला कौड़ी लाल, चला है कहानी की निविदा भरने...”
“सड़क छाप किस्सागो, चला है निविदा भरने...बिना बंदूक का कलमची चला है निविदा भरने...”
“इस नामुराद को कहो
कि यहां से दफा हो जाए, नहीं तो मेरी राइफल गोली उगलने के लिए
तैयार है...”
“अरे आवारा घुमंत
किस्सागो...यहां सिर्फ और सिर्फ वही दस मठाधीश ही निविदा भरेंगे, जो कभी अपने शीश महल से बाहर नहीं निकलते...हाथ में कलम और बंदूक, दोनों रखते हैं...”
“चल यहां से, नौ दो ग्यारह हो जा...बंजारा किस्सागो. मदारी
की तरह भीड़ जुटा कर किस्सा सुनाने वाला...फुटपथिया...लकीर
का फकीर...स्त्री का नाम सुनते ही जिसकी हड्डी हिलने लगे, वह चला है कहानी की निविदा भरने...है तुमको कुछ सेक्स-वेक्स का अनुभव? बेगैरत ब्रह्मचारी, चला है निविदा भरने...अरे, मैं तेरे भेजे में भर दूंगा गोलियां...”
साहब, उन मठाधीशों की धमकी और चेतावनी सुन कर, मेरी सांस अप-डाउन
होने लगी...लेकिन, मैंने तनिक आंखें नचाईं और देखा कि वहां लाल
पार्टी के कहानीकार या उनके प्रतिनिधि थे ही नहीं...मैंने उनसे कहा-
“ओ भैया बंदूकधारी कहानीकारो, आप सब को मेरा सलाम. आप लोग मेरे ऊपर गोलियां दागेंगे...ठीक
है...लेकिन मैं अपना एक छोटा सा परिचय दे देता हूं...मैं लाल पार्टी...”
साहब, मैंने जैसे ही लाल पार्टी का नाम लिया, सभी मठाधीशों ने
अपनी-अपनी राइफल डाउन कर ली और मैंने भी निविदा भर दी...
साहब, एक बात सच कह रहा हूं कि मैं उन मठाधीशों को कहने वाला था कि मैं लाल
पार्टी से कोई संबंध नहीं रखता हूं. लेकिन, मैंने जैसे ही लाल
पार्टी का नाम लिया, सब के सब कांप उठे और अपनी-अपनी राइफल डाउन कर
ली तो मैंने भी अपना परिचय नहीं दिया...वस्तुतः मुझे कहानीकारों के पास कलम की जगह
राइफल देख कर लगा था कि वे लोग सभी लाल पार्टी के टाइपराइटर-कहानीकार
हैं...जैसे अश्लीलानद बाघवेंद्र थे...जैसे सुरिन्दम खूनी जी थे...साहब, इन महानुभावों के जैसे बहुत से थे, जो पीठ पर बंदूक और
हाथ में कलम या हथगोले ले कर चलते थे और दिन रात वासना का राग गाते रहते थे...आज
भी इन महानुभावों के चेले उसी वासना-राग को गा रहे हैं...बारूदी लेखन कर रहे हैं, और बारूदी विस्फोट भी करने में भी वे एक्सपर्ट हैं...आप इन सब को जरूर
जानते होंगे...ये लोग बहुप्रचारित हैं...मालामाल हैं...और साहब, अपना ये हाल है कि मैं दीपावली में पटाखे भी नहीं फोड़ सकता हूं. पटाखों के
फूटने के पहले ही मेरा भय फूट पड़ता है...रोटी और पटाखे में मुझे किसी एक को चुनना
पड़ता है, सो अलग...और स्वाभाविक रूप से मैं रोटी को चुनता हूं...
खैर, निविदा भरने का कोई लाभ मुझे नहीं मिला...क्योंकि निविदा के बाद की
प्रक्रियाएं बहुत राज युक्त तरीके से राज भाषा विभाग ने संचालित की थीं, जैसे कि रक्षा विभाग किसी सामरिक महत्व का फाइटर प्लेन या तोप खरीदने जा
रहा हो और वह विभाग अपने लिए भी स्पेस बना रहा हो...खैर, कहानी की खरीद में हवाले-सवाले का भी खेल चला...बोफराईजेशन भी हुआ...और
साहब मैं तो इस प्रकार के खेल में जीरो था...राज भाषा विभाग का राज मैं नहीं समझ
पाया...और तब से मैं पूर्ववत घूमंत किस्सागो की तरह कर्मरत हूं...आपकी सेवा में
हूं...यायावरी कर रहा हूं...ओरिजिनल स्टोरी सुना रहा हूं...रंगे-पुते और सेक्स की
चासनी चढ़ी स्टोरी के लिए आपको अश्लीलानंद बाघवेंद्र या फुलवा महोदया की रचनाओं में
जाना होगा, घर-परिवार से छुप-छुपाके उनकी स्टोरी पढ़नी
होगी...साहब, वे हॉट गुलाब जामुन टाइप की स्टोरी लिखते थे
और आर्डर दे कर सुंदर और सुंदरियों से लिखवाते भी थे. उनके सभी स्टोरी राइटर
अपशब्द लेखन और सेक्स चित्रण के एक्सपर्ट थे...लेकिन, साहब, मैं ठहरा ब्रह्मचारी...कॉकटेल स्टोरी शायद न
सुना पाऊं...लेकिन, गौड प्रॉमिस, मैं आपको बस सच्ची
स्टोरी ही सुनाऊंगा...ताजा स्टोरी ही सुनाऊंगा...बिना मसाले का जो आसानी से हजम हो
और जो आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बनाए रखे.
साहब, मैं तो दूरगामी किस्सागो हूं...मैं कोशिश करता हूं कि स्टोरी को डिटेल
में दूं और उसे दूर तक ले जाऊं...पूरे डिटेल के साथ खींचूं...साहब, मैं स्टोरी कितनी भी लंबी खींचूं, मेरी जेब में तो बस
सांस चालू रखने की कीमत ही आती है...फिर भी मैं अपनी छोटी सी कमाई में ही खुश रहता
हूं. संतुष्ट हूं. मन चंगा तो कठौती में गंगा! इस लिए मेरी स्टोरी में मस्ती ही
मस्ती होती है.
साहब, मेरे पास जब ज्यादा
पैसे आ जाते हैं तब मुझे डर लगने लगता है. आपके इस किस्सागो को गांव-गांव, शहर-शहर घूमना पड़ता है,
बिना किसी अंगरक्षक के और हर रोज
मैं अखबार में क्राइम के स्थाई कॉलम देखता हूं, एक से एक हड्डी हिलाने
वाले क्राइम समाचार पढ़ता हूं...और रात में मुझे बुरे-बुरे सपने आते हैं और रात में
क्या, दिन में भी मुझे पांच रुपए जेब में डाल कर चलते हुए
लुट जाने का भयानक भय लगता है...साहब, मुझे खुदा
बचाए...पुलिस के लोगों को भी खुदा बचाए जो अपने थाने की चारदीवारी के अंदर भी सेफ
नहीं हैं...दोस्त कब बुला रहे हो मुझे अपनी गली में. अपने गाँव में...मुझसे स्टोरी
सुनने?
-दिलीप तेतरवे
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