जिंदगी लोगे?
कौन सी-
राजाओं-महाराजाओं की
गरीबों या अमीरों की?
नेता की या जनता की?
महलों की या जंगलों की?
शहरों की या गाँवों की?
मजदूर बनोगे या मालिक?
हँसती फूल सी या पसीने से नहाई हुई?
भुजाओं के भरोसे दमकती या
खाट पर दम तोड़ती, खाँसती जिंदगी?
मौत को बार-बार ठेलती या
आशाओं के द्वार अगोरती जिंदगी?
मखमली सेज पर अलस करवटें बदलती
या फुटपाथ पर लथड़ती, गूदड़ समेटती जिंदगी?
बसों, ट्रकों, साइकिलों या गाड़ियों की तरह भागती हुई
या ईश्वर की दयानतदारी या
कंजूसी को उजागर करती जिंदगी?
गाँधी की जिंदगी लोगे?
बाई वन गेट वन फ्री का ऑफर है उसमें-
या कबीर, तुलसी या मीरा की?
सूर की या शंकराचार्य की लेनी है
तो यूँ ही ले जाओ|
कोई खरीददार नहीं है उसका
मेरी मित्रता का उपहार समझ कर रख
लेना
जिंदगी कैसी चाहिए?
यहाँ कीमत के साथ टंगी है
रामायण की, गीता की
इतिहास की या राजनीति की
खोज लो इस कोलाज में
कतरनों में झाँकियाँ भी हैं
चुन लो अपने पसंद की
इच्छा तुम्हारी है
पसंद तुम्हारी है
लेकिन एक सुझाव मानोगे मेरा?
लेना न जिंदगी औरत की
क्योंकि फिर
जीनी पड़ेगी एक साथ कई जिंदगी
और वह भी मुफ्त में
कोई नेपथ्य से बोल ही पड़ा
या अल्लाह
फिर क्या होगा
जिंदगी लेकर|
अंशु रत्नेश त्रिपाठी
गुडगाँव, हरियाणा.
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