सम्मान का अपमान नहीं हो सकता 
गरिमा धूमिल नहीं की जा सकती 
जो मर्यादित है 
उसे गाली देकर भी 
अमर्यादित नहीं किया जा सकता ...
शमशान में कर मांगते 
राजा हरिश्चंद्र की सत्य निष्ठा नहीं बदली 
पुत्रशोक,पत्नी विवशता के आगे भी 
हरिश्चंद्र अडिग रहे 
भिक्षाटन करते हुए 
बुद्ध का ज्ञान बाधित नहीं हुआ 
....
अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है 
अमर्यादित लकीरों के आगे 
मर्यादा का अस्तित्व निखरता है 
विघ्न बाधाओं के मध्य 
सत्य और प्राप्य का गौरव प्रतिष्ठित होता है 
...
उन्हीं जड़ों को पूरी ताकत से हिलाया जाता है 
जिसकी पकड़ पृथ्वी की गहराई तक होती है 
और दूर तक फैली होती है ...
पीड़ा होना सहज है 
पर पीड़ा में भय !!!
कदाचित नहीं ...
मजबूत जड़ें प्रभु की हथेलियों पर टिकी होती हैं 
और .... 
स्मरण रहे 
सागर से एक मटकी पानी निकाल लेने से 
सागर खाली नहीं होता !
हाँ खारापन उसका दर्द है 
क्योंकि अमानवीय व्यवहार से 
दर्द की लहरें उठती हैं 
बहा ले जाने के उपक्रम में 
निरंतर हाहाकार करती हैं 
....
पर प्रभु की लीला -
उन लहरों में भी अद्भुत सौन्दर्य होता है 
दर्द की गहराई में जो उतर गया 
वह मोती को पा ही लेता है !




रश्मि प्रभा, पटना
5 Responses
  1. दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !
    ....सच कहा है...बहुत सार्थक और गहन अभिव्यक्ति...


  2. अपमान करने वाला स्वतंत्र करता है ....
    आज़ादी इस बात की की अब मुझ पर जबरदस्ती
    मुस्कुराने का कोई बंधन नहीं ,औचित्य नहीं ....


  3. उन्हीं जड़ों को पूरी ताकत से हिलाया जाता है
    जिसकी पकड़ पृथ्वी की गहराई तक होती है
    और दूर तक फैली होती है ...pakki bat par ...kahan samajh paate hain log itni acchhi baten ....


  4. कुछ समय से आपके लेखन में बदलाव आया है...


  5. Unknown Says:

    बहुत ही सुदर ..सारगर्भित
    प्रेरणास्रोत बन गया है मेरे लिए ...
    अभिनंदन


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