कब पूरी होगी यह यात्रा
भारी मन से काठ का पुल पार करते हुवे
हर बार कठुवाये मन को ख्याल आया
कहीं ये बीच में ही टूट जाए तो
इस पार उस पार दोनों छोर पर धुंधलका
किनारे का जैसे कुछ अता पता ही नहीं
दिशाएँ सहम सी गयीं,
हर बार कठुवाये मन को ख्याल आया
कहीं ये बीच में ही टूट जाए तो
इस पार उस पार दोनों छोर पर धुंधलका
किनारे का जैसे कुछ अता पता ही नहीं
दिशाएँ सहम सी गयीं,
रेंगती गति से एक एक कदम बढाती मैं
बेचैन लगभग भयभीत ,
बेचैन लगभग भयभीत ,
घनी चुप्पी को कब तक बर्दाश्त करती
पार उतरने की न अब कोई जल्दी थी न इच्छा
अपनी हर आहट चौंका देती थी ....
मन भरा और भारी भारी हो रहा है
आखिर कब ....कब पूरी होगी यह यात्रा ......
पार उतरने की न अब कोई जल्दी थी न इच्छा
अपनी हर आहट चौंका देती थी ....
मन भरा और भारी भारी हो रहा है
आखिर कब ....कब पूरी होगी यह यात्रा ......
डॉ सुधा उपाध्याय
नई दिल्ली
ak behatar kavita