सावधान !आर्यपुत्र
!
ख़त्म नहीं हुआ ,अभी तुम्हारा संघर्ष ,
शेष है अपकर्ष ,अभी तुंम्हारा ,
ख़त्म नहीं हुआ ,अभी तुम्हारा संघर्ष ,
शेष है अपकर्ष ,अभी तुंम्हारा ,
चूंकि, अभी भी
तुम्हारे हाथ सने हैं ,
खून से .
तुम्हारे हाथ सने हैं ,
खून से .
तुम नहीं जानते ,
दोष,निर्दोष का फर्क ,
तुम्हारे अंदर अभी भी भरी है ,
तुम्हारे अंदर अभी भी भरी है ,
ईर्ष्या और
प्रतिशोध की आग .
बालक और नारी,
बालक और नारी,
अब नहीं रहे
निरीह ,
तुम्हारी
नज़रों में .
सावधान!
तुम अभी भी
मनुष्य नहीं ,पशु ही हो
तुम अभी भी
मनुष्य नहीं ,पशु ही हो
तुम्हे यात्रा
करनी है ,
विकास की अभी
लम्बी ------दूरी
.
अरूण कुमार सज्जन
जमशेदपुर, झारखंड.
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