रहे बेहोश ये दुनिया मगर तुम होश न
खोना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
जो तू चाहे तो तख्त-ओ-ताज की,
बुनयाद हिला दे........।
जुर्म से, अन्याय से..........
हर पर्दा हटा दे..........।
इसलिए सत्ता का तू बनना न खिलौना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
बुनयाद हिला दे........।
जुर्म से, अन्याय से..........
हर पर्दा हटा दे..........।
इसलिए सत्ता का तू बनना न खिलौना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
कुम्भकर्णी नींद में ..........
जो लोग सोए हैं .........।
जो भूलकर इंसानियत .....
खुद में ही खोए हैं ........।
जगाना है उन्हें इसलिए ,तुम नही सोना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
जो लोग सोए हैं .........।
जो भूलकर इंसानियत .....
खुद में ही खोए हैं ........।
जगाना है उन्हें इसलिए ,तुम नही सोना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
हर तरफ फैला.........
ये जो नफरत का आलम है ।
बैचैन...बेबस...बेजार.....
लाचार मौसम है........।
माहौल में ऐसे तुझे बस प्यार है बोना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
ये जो नफरत का आलम है ।
बैचैन...बेबस...बेजार.....
लाचार मौसम है........।
माहौल में ऐसे तुझे बस प्यार है बोना ।
मेरा कहना है तुमसे ए कलम खामोश न होना ।
रचना भारतीय, मधेपुरा
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
Bahut hi achhi kavita hai, dil ko chhu lene wali....
In realy it is very usable poem for those people who is selfish!!! hope you will bring change...