आओ-आओ पेड़ लगाएँ...
आओ पेड़ लगाएँ हम.....।
सूखी-बंजर हो रही धरती,
हरियाली को लाएँ हम....।
आओ पेड़ लगाएँ हम.....।
सूखी-बंजर हो रही धरती,
हरियाली को लाएँ हम....।
खत्म हो गये..पेड़ जो सारे..
तो सोचो जरा क्या होगा...?
सांसें हमारी रुक जाएगी....
हमें हवा कहाँ से मिलेगा.....?
आओ-आओ पेड़ लगाएँ.....
जीवन अपना बचाएँ हम.....।
तो सोचो जरा क्या होगा...?
सांसें हमारी रुक जाएगी....
हमें हवा कहाँ से मिलेगा.....?
आओ-आओ पेड़ लगाएँ.....
जीवन अपना बचाएँ हम.....।
नहीं मिलेगी हमे छाँव घनेरी..
गर्मी के जलते मौसम में......।
जिएँगे कैसे हम मरुभूमि में...
करो कल्पना जरा अपने मन में..।
आओ-आओ पेड़ लगाएँ........
अपनी धरा बचाएँ हम.........।
गर्मी के जलते मौसम में......।
जिएँगे कैसे हम मरुभूमि में...
करो कल्पना जरा अपने मन में..।
आओ-आओ पेड़ लगाएँ........
अपनी धरा बचाएँ हम.........।
रूठ गयी जो वर्षा रानी..
तो खेती होगी कैसे ......?
खत्म जो होगा भू-जल स्तर...
हम पियेंगे पानी कैसे........?
आओ-आओ पेड़ लगाएँ......
भोजन अपना बचाएँ हम.....।।
सूखी-बंजर हो रही धरती....
हरियाली को लाएँ हम ।।
तो खेती होगी कैसे ......?
खत्म जो होगा भू-जल स्तर...
हम पियेंगे पानी कैसे........?
आओ-आओ पेड़ लगाएँ......
भोजन अपना बचाएँ हम.....।।
सूखी-बंजर हो रही धरती....
हरियाली को लाएँ हम ।।
रचना भारतीय, मधेपुरा
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