बहुत नादान हैं
ये आंसू ,
किसी जिद्दी बच्चे की तरह
पलकें भिंगोते हैं ,
दुःख की अनजानी गलियों से गुजर कर ,
सुख के उन्नत शिखरों तक ,
चुपचाप निकल पड़ते हैं,
कभी अधरों पर मुस्कान बन कर ,
तो कभी मन का सुकून बन जाते हैं .
भावनाओं की शुष्क धरती पर ,,
सावन की फुहार बन ,
बरस पड़ते हैं ये मुक्ता कण ,
और भींग उठती है मन की दुनिया ,
बूंद बूंद पिघलनेलगती हैं ,
दर्द की परछाइयाँ ...
कभी हमारी खुशियों में ,
खिलखिला उठते हैं ,
ये नन्हे शरारती शिशु,
हमें पता ही नहीं चलता ,
और ये मनमानी कर जाते हैं ,
कितना भी रोकें हम ,
ये मानते ही नहीं ,नादान जो हैं ,
नहीं जानते हमारी -तुम्हारी दुनियां की बातें.
किसी जिद्दी बच्चे की तरह
पलकें भिंगोते हैं ,
दुःख की अनजानी गलियों से गुजर कर ,
सुख के उन्नत शिखरों तक ,
चुपचाप निकल पड़ते हैं,
कभी अधरों पर मुस्कान बन कर ,
तो कभी मन का सुकून बन जाते हैं .
भावनाओं की शुष्क धरती पर ,,
सावन की फुहार बन ,
बरस पड़ते हैं ये मुक्ता कण ,
और भींग उठती है मन की दुनिया ,
बूंद बूंद पिघलनेलगती हैं ,
दर्द की परछाइयाँ ...
कभी हमारी खुशियों में ,
खिलखिला उठते हैं ,
ये नन्हे शरारती शिशु,
हमें पता ही नहीं चलता ,
और ये मनमानी कर जाते हैं ,
कितना भी रोकें हम ,
ये मानते ही नहीं ,नादान जो हैं ,
नहीं जानते हमारी -तुम्हारी दुनियां की बातें.
-पद्मा मिश्रा
LIG --114 --रो हॉउस, आदित्यपुर-2, जमशेदपुर -13
पंक्तियों ने आपके, है राज ऐसा खोला
मानो आंसुओं की हर अदा को एक सितार में जोड़ा
सच में बहुत नादान हैं ये आंसू जिसे आज पद्मा मिश्रा जी ने बोला :)
bhut khub....
VERY - VERY THANK YOU
very much...