मेरे जज्बातों की रवानगी में,
तूने मेरा साथ दिया,
तू हो गयी बेबाक
और दुनिया को हँसने का मौका दिया
मेरे जज्बातो और तेरी बेबाकी को
कोई दायरा मंजूर नहीं
वो और वक्त था
सिर झुकाया हर किसी के सामने
ये और वक्त है
वहीं हमारी राह में है खडे
परों को हमारे काटे
ऎसे सय्याद से दूर की आदाब हैं
मुझे आगोश में लेने में
मौत ने संगदिली दिखायी
वरना मेरे ताबूत में
कील ठोकने वाले कतार में खडें हैं
तू जो हैं मेरी अजीज
मुझे अब किसी की दरकार नहीं
यकीन हैं मुझे तू मेरे साथ
मेरी मिट्टी तक जायेगी
और कब्र पर मेरी
शमा बन जलेगी....
निशा मोटघरे
औरंगाबाद, महाराष्ट्र.
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