किसे पड़ी, है कहाँ तारा टूटा,
किस पंछी का उजड़ा रैनबसेरा,

किसे पड़ी है, समझे तारो की घडी,
क्यों तकिया भीगा, किस का अरमान टूटा,

क्षणभंगुर संसार में, छलावी माया सारी,
दुनिया भागे इसके पीछे, दे खुद को छलावा,

विश्वास की पुँजी लुटे, यहाँ हर बसने वाला,
ढूंढें नजर उसे, मिलेगा जहाँ यकीन का कुंजी-ताला,

खताओं की फ़ेहरिस्त लिये बंदे मिले हजार,
मुआफ़ी की दरकार में हैं अश्को की कतार......



निशा मोटघरे
औरंगाबाद, महाराष्ट्र
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