सदियों से....
धूर्तता की मिशाल हूँ मैं,
उपमा साहित्य की
बेमिशाल हूँ मैं ।
बीम्बों में प्रतीकों में
मुझे परोशा गया ,
मेरी जाती वंशजों को ,
कटुता से कोसा गया ।
पंचतंत्र का पात्र बनकर ,
मेरी कपटी चतुराई पर ,
किया गया उपहास परिहास,
सदियों से.......
मैं सहता रहा , वाद विवाद ।
ताकि छल प्रपंची चाल से,
कपटी करिश्माई जाल से ।
मानवता हो सके सावधान ,
प्रगति पथ पर ना हो व्यवधान ।
परन्तु........
मानव समुदाय सियार हो गया,
धूर्तता से ही प्यार हो गया ।
उसकी प्रगति का मैं ही हूँ सोपान,
सियार से ही गढ़ता वह कीर्तिमान ।
सियार से ही गढ़ता वह कीर्तिमान ।।


डॉ विश्वनाथ विवेका 
टी.पी.कॉलेज (अंग्रेजी विभाग)
मधेपुरा.
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