तुमको प्रणाम है
सदियों से उपकार तुम्हारा,
सदियों से उपकार तुम्हारा,
पाता आया धरा धाम
है
पिता हिमालय की गोदी से,
पिता हिमालय की गोदी से,
उछली नीचे आई
मरुस्थली का सिंचन कर
मरुस्थली का सिंचन कर
दुनिया नई बनाई
बहुत वेग से सागर से मिल,
बहुत वेग से सागर से मिल,
जीवन-सार बताया
पूर्ण समर्पण ही जीवन का,
पूर्ण समर्पण ही जीवन का,
सच्चा तत्व जताया
क्षत-विक्षत कर आज तुझे,
क्षत-विक्षत कर आज तुझे,
हम कृतघ्नता
दिखलाते
अमृत-दात्री बनी प्रदूषित,
अमृत-दात्री बनी प्रदूषित,
फिर भी नहीं
लजाते
सुरसरि सबका हित करती
सुरसरि सबका हित करती
तुलसी ने हमें
बताया
पर विकास की ओट लिए,
पर विकास की ओट लिए,
मानव ने तुम्हे
सताया ।
मुक्त करो गंगा माता को,
मुक्त करो गंगा माता को,
यह युग का सन्देश
केवल गंगा हर सकती है,
केवल गंगा हर सकती है,
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