प्रकृति
का सुख सबको नसीब नहीं होता
लेकिन
इस सुख पर तुम और सिर्फ़ तुम राज़ करते हो
प्रकृति
का आँचल ही तुम्हारा आवरण है
और  
तुम प्रकृति के ऊर्जा का स्रोत
प्रकृति
तुममें सुख तलाशती है
और
तुम
प्रकृति में
फिर  
देर किस बात की
प्रकृति
आँचल फैलाये हुए
तुम्हारे
आने का सपना देख रही है
और  
तुम हो कि ....
तुम भी तो
प्रकृति
से मिलने के लिए
सपने देखते हो
तो सुनो !
सपने देखे नहीं जाते
सपनों को जिया जाता है
तुम
भी तो जीते हो
प्रकृति में अपने सपनों को और प्रकृति तुममें
याद रखना !
सपने की विशालता हिमालय की तरह हो
लेकिन
उसकी ख़ूबियाँ हिमालय जैसी ही हों
हमें
पता है
प्रकृति
और
हिमाचल के साख तुम्हारा गहरा साठ-गाँठ है
पर
हमें भी
ख़बर है
हवाओं ने
की है चुगली
तुम्हारी, हमसे
हिमालय
ने भेजा है पैग़ाम
और  
प्रकृति
ने पिटवायी है, मुनादी
याद रखना !
सपनों के आग़ोश में
सपने पलते हैं
सपनों को जिन्दा रखना
तभी
प्रकृति
भी जिन्दा रहेगी और सपनों भी
आगे बढ़ो !
और
दबोच लो
अपने सपने को ...
सुन रहे हो न
हमारे दिल की आवाज़
.....
सिर्फ़ तुम्हारे लिए !



डॉ. रमेश यादव
सहायक  प्रोफ़ेसर, इग्नू 
नई दिल्ली
1 Response
  1. भाई राकेश जी !
    प्रकृति और प्रेम को जन जन-तक पहुँचाने के लिए
    आपका
    और
    'मधेपुरा टुडे' का दिल से आभार !


एक टिप्पणी भेजें