एक ख्वाब पल रहा है,
उंचाइयों को छुने को
एक दिल मचल रहा है,
बस एक उम्मीद लिए इस मन मे
ये साँसे चल रही है,
कुछ ख्वाहीसों की खातिर
ये तन सुलग रहा है,
पानी है अपनी मंजिल
हर धड़कन ये कह रही है,
पूरी हो ये तम्मना
रब से दुआ है इतनी ,
पा लूं अपनी मंजिल
हर कठिनाइयों को सहकर्,
कठिनाइयां हैं बहुत सी
पगडंडियाँ भी नही हैं,
इन रास्तों पे चल कर
आसमान को छू
लेना,
ज्यादा कठिन नही है
,
मंजिल को अगर है पाना
दुनिया को ये दिखाना
,
सिर्फ ख्वाहिश नही है ये मेरी
ये सिर्फ मंजिल ही नही है
,
ये वो सपना है मेरा ,
जो, देखा था मैने,
दिन मे,
खुली आंखों से.
पल्लवी राय भारद्वाज
मधेपुरा
nice..
sundar rachna............