दिल वालों की है दिल्ली ,
पर आज उड़ रही है इसकी खिल्ली ,
सभी जगह छाया है गुंडों का राज ,
पर, पुलिस भी चुप है आज,
कैसी है यह दिल वालों की दिल्ली ,
जिसमे उडती है बेटी की खिल्ली,
शर्म करो कुछ बलात्कारियों ,
तुम्हारी दरिंदगी से सो गयी बेटियाँ,
बेचारी वो लड़की रोई होगी,
दर्द से तड्पी होगी,
कैसी जिल्लत भरी 
जिंदगी उसने सही होगी,
अब न कहना वो थी बेचारी लड़की,
क्यूँ कि अभी तक वो 
हमारें दिल में सोयी नहीं ,
दिल्ली वालों तुम्हारा ये दिल
अब किसी को न भाता ,
हर जगह लग गया है दरिंदगी का ताला,
आज ऐसी हालत को देखकर
तरस है मुझको आता,
दिल्ली वालों अब तुम्हारा दिल
किसी को न भाता,
जब खुलेंगे दरिंदगी के तालें,
तभी कहलाएगी दिलवालों की दिल्ली,
फिर नहीं उड़ेगी इसकी खिल्ली...


गीता गाबा, 
नई दिल्ली
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