पूरी कालोनी में चर्चा थी की मिसेज सिद्धि शर्मा का
बेटा रातोरात बहू बच्चों
को लेकर घर छोड़ कर निकल गया.
..बस !फिर क्या था ? जगहजगह
समूह बनाये, सिर जोड़े हुए महिलाओं का
सूचनातंत्र सक्रिय हो
उठा।उस समय मेरे घर पर मेहमान आये हुए थे,-मै और मेरे पति उनसे बात चीत में व्यस्त थे ,मै उन्हें चाय देकर ऊपर छत पर आ गई .और पढने
के लिए जैसे ही अख़बार खोल कर कुर्सी पर बैठी -नीचे से आवाज आई---
--''रमा जी, नीचे आइये !,पेपर फिर पढ़ लीजियेगा ''गुस्सा तो बहुत आया पर जब झांक कर देखा तो शिवानी
मुझे बड़ी बेसब्री से नीचे बुला रही थी पर मै अपने पति के मेहमानों के घर में उपस्थित होने की वजह से उस
समय बाहर
नहीं जा सकी -और काम - में
व्यस्त हो गई,....पर बाहर का
शोर बढ़ता जा रहा था ..चीखने चिल्लाने की भी आवाजें आ रही थीं पूरी कालोनी ही सड़क पर एकत्रित हो गई थी
उस क्षण तो एकबारगी मै भी घबरा गई थी, मेरे घर के मेहमान भी जानने के लिए उत्सुक
हो उठे की अचानक क्या हो गया है ? --पता लगा कि वही सिद्धि शर्मा के बेटे बहू की चर्चा हो रही है,जो आधी रात को अपने बच्चो के साथ माता पिता और परिवार से नाराज होकर चला गया था
...अभी अभी बेटी जो इसपूरे घटनाक्रम का मुख्य बिंदु थी --भी शामिल हो गई थी और
गुस्से में अनाप शनाप बोल रही थी, रोते. चिल्लाते माँ से बहस कर रही थी,,,शोर इतना ज्यादा था कि वे सब मिलकर क्या बोल रहे हैं
-पता ही नहीं चल रहा था,..थोड़ी देर बाद एक एक कर
सभी खिसकने लगे,..मजमा शांत
हो रहा था,...एक बड़ा तूफान आकर गुजर गया था ,..मै जब अपने मेहमानों को विदा करने घर के
दरवाजे तक आई तो देखा कि मेरी प्रिय पड़ोसिनें फिर सिर जोड़े हुए किसी गम्भीर रहस्यमय चर्चा में निमग्न
थीं ...शायद रात वाली घटना की समीक्षा हो रही थी,इसके पहले की वे मुझे देखतीं और जबरन अपनी चर्चा
में शामिल करतीं ,मै जल्दी से घर के अंदर आ गई,
किचन में रोटियां बनाते हुए भी मेरा
मन बार बार यही सोच रहा था कि किसी का व्यक्तिगत जीवन भी किस प्रकार सामाजिक जीवन और
परिवेश को प्रभावित करसकता है
!....यदि मिसेज शर्मा ही अपनी पढ़ी लिखी बहू को समझने का प्रयत्न करतीं और अपने पारिवारिक परिवेश
-संस्कारों में ढलने का प्रयास करतीं तो शायद उन्हें भावनात्मक रूप से परेशान करने
वाली आज की घटना घटित न होती.
.
.
हमारी कालोनी में पढ़े लिखे युवाओं की एक नई पीढ़ी तैयार हो
रही थी,जो अंग्रेजी माध्यम के
स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रही थी,..वहीँ के तौर तरीके ..रहन सहन सभ्यता को आसानी सेअपनाकर,उनके जैसा ही आचरण करना सीख रही थी, शिखा, मिसेज ओझा सभी के बच्चे बड़े हो गए थे ...कुछ ने तो प्रतियोगी
परीक्षाएं पास कर मेडिकल इंजीनियरिंग आदि में दाखिला ले लिया था,.......पर हमारी पड़ोसिने भी न जाने किस मिटटी की बनी
हुईं थीं ,.....जिन बच्चों को
छोटी कक्षाओं में सजे सजाये स्कूली यूनिफार्म .लक दक चमकते जुटे और पीठ पर बैग
..गले मेंटाई सजा स्कूल भेजते समय फूली नहीं समाती थीं ....गर्व से हमेशा गर्दन तानी रहती ...वही मेरी सहेलियां बच्चों के बड़े होकर अंग्रेजी
व्यवहार व् आचरण से त्रस्त रहने लगीं थीं .....अभी परसों ही ओझा जी की बेटी शिप्रा ने
मिसेज --शर्मा को ''हाय आंटी
..आप कैसी हैं ?''कहकर मानो तूफान ही ला दिया था,..वह तो अपनी स्कूटी स्टार्ट कर चली गई ....पर मिसेज शर्मा का मूड
देखने लायक था ...बेवजह बडबडा
रही थीं ---''क्या तमीज है
!...हाय हाय आंटी ..नमस्ते या प्रणाम करना तो जैसे माँ बाप ने सिखाया ही नहीं ?''..................
न जाने कहाँ से शिखा आ टपकी --''क्या करें !..ये आजकल के बच्चे हैं जब माँ बाप ही मुंहफट
हैं तो बच्चे क्यों न होंगे?आये दिन तो अपने सास
ससुर से झगडती हैं मिसेज ओझा --पहले खुद तमीज सिख लें ''
.....इतना कह कर उन्होंने अपने मन की
भंडास निकल ली ..पर वे भूल गईं कि जब आधी रात को उनके बेटे की तबियत खराब हो गई थी तो
तेज बारिश में भींग कर यही शिप्रा डाक्टर को बुला कर लाई थी और दवा भी खरीद लई थी ,....मेरा मन यह सुनकर क्षोभ से भर गया था ..खैर उनकी
बातें वे ही जाने ..की मुद्रा में मैंने अपना कम ख़त्म किया और ड्राइंग रूम में बैठ
कर टी वी खोला तो पहला दृश्य उभरा --''सास बहू और साजिश '' ..मै चौंक उठी कि समाज में सास बहू के बीच कितनी गहरी साजिश है कि सास बहू होंगी तो
कुछ न कुछ अघटित होना ही है, यही
धारणा समाज में फैली है . अब दमयन्ती सिंह को ही लें -वो अपनी बहू को बेटी जैसा प्यार करती हैं ..आधुनिक कपड़े
पहनने ,बाहर घूमने फिरने की आजादी दी है
.दोनों सहेलियों की तरह रहती हैं ,..कहीं कोई टकराव नहीं पर कालोनी वालों की नजरों में काँटे सी चुभती हैं दोनों, उनके कपड़े पहनने, बाल बनाने, चलने
का प्रसंग तो मेरी पडोसी सहेलियों का प्रिय विषय था ,वैसे भले ही उनमे आपस में कितने ही मतभेद हों ...पर
इस मुद्दे पर सबकी राय एक नजर आती है ,क्योंकि वे दोनों तो कालोनी की परंपरा तोड़ लीक से बाहर चल रही थीं
---भला यह भी कोई बात हुई ?की सास -बहू वह भी प्रेम से रहें !..अपनी विलक्षण सोच पर
मुझे खुद ही हंसी आ गई .... हमारी पड़ोसिनो की दिनचर्या सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाती है .बुजुर्ग
और धार्मिक महिलाएं मुंह अँधेरे ही उठ कर दूसरों के लान और बगीचों से चोरी चोरी फूल तोडती हैं ,और प्लास्टिक के छोटे छोटे थैलियों में भर कर ही घर लौटती हैं --सैर भी
हो गई और ठाकुर जी की पूजा का प्रबंध भी ......पर इस प्रातः भ्रमण में भी
स्वयम के स्वास्थ्य लाभ की चर्चा कम, पर-निंदा ही ज्यादा वक्त होती रहती है ......मेरी
पड़ोसी सहेलियां
सारी उलझने , वाद विवाद और उत्सुकता भरे सवालों का हल भी
इस प्रातः
भ्रमण में आसानी से कर डालती हैं ..अभी थोड़ी देर पहले ही उनमे आपसी बहस -तकरार और
शर्मा जी की बेटी के भाग जाने का मुद्दा जोर शोर से गरमाया था ..मिसेज शर्मा
की जम कर खिल्ली उड़ाई गई .परअचानक उनके बेहोश होकर गिर जाने से खलबली मच गई -- घबरा गए क्योंकि वे दिल की मरीज थीं -- संयोग यह की आज कालोनी में कोई पुरुष नहीं था ..लेकिन तुरंत शुक्ल जी की पत्नी नंगे पांवो दौडती हुई -डाक्टर के पास दौड़ पड़ीं
......मै भी गर्म दूध लेकर जब पहुंची तो देखा की नजारा बदला हुआ था ,शिखा
उनके पांवो की मालिश कर रही थी ..और उनका मजाक उड़ने वाली निधि उनका सिर अपनी गोद में रखे सहला रही थी
..किचेन में शिप्रा जल्दी से पानी गर्म कर रही थी उन्हें दवा देने के लिए
--सारा झगड़ा लड़ाई भूल कर वे जी जान से उनकी सेवा में जुटी हुई थी ---मै हैरान
थी --ऐसी होती हैं पड़ोसिने !...
पद्मा मिश्रा
LIG 114, रो हॉउस, आदित्यपुर-2, जमशेदपुर-13
wow! amazing story...I enjoyed it very much ,keep posting more new stories .marriage