दादी अभी भी नाराज चल रही है ,सुबह से केवल चाय पी और ठाकुरजी के आगे बैठकर माला जप रही हैं - -स्निग्धा को कभी कभी दादी पर बहुत तरस आता है -बेचारी क्या करें ,पुरानी परम्पराओं में जकड़ी हुई अपनी रूढ़ियों और संस्कारों को नहीं छोड़ पातीं - -उन्होंने तो बचपन से यही देखा था कि बेटा अमूल्य अमानत है ,श्रेष्ठ है  क्योंकि वह वंशबेल बढ़ाता  है वारिस है घर का, ,और बेटियां तो पराया धन !
उन पर खर्च क्यों करें ? ,उस दिन यही सब बातें उन्होंने पापाजी के सामने कह दीँ - - तब कभी भी ज्यादा न बोलने वाले पापाजी ने दादी का घोर विरोध किया था -कड़े शब्दों में फटकार लगाईं थी ,बेचारी माँ !,कभी दादी तो कभी पापा के बीच दौड़ती रही थीं ,पर विस्फोट तो हो चुका था ,दादी नाराज हो गई थीं - -बात यूँ थी कि स्निग्धा मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में अव्वल आई थी और उसके नामांकन के लिए पैसों की व्यवस्था  पापा ने मुश्किल से की थी ,यदयपि बड़ी कम्पनी में कार्यरत थे -पैसों की कोई विशेष परेशानी नहीं होती यदि पिछले वर्ष यह फ़्लैट नहीं ख़रीदा होता
---छोटे भाई के स्कूल आठवीं के छात्रों का टूर गंगटोक जा रहा था ,बस -दादी का लाड़ला गुड्डू पापा से टूर पर जाने के लिए दस हजार रूपये मांग रहा था -पापा ने मना कर दिया कि दीदी का एडमिशन कराना है ,घूमने का क्या -हम फिर चलेंगे साथ --बस यही बात दादी को चुभ गई -उनके लाडले पोते की  छोटी सी इच्छा जो पूरी नहीं हुई थी  , ,बेटी को डॉकटरी पढ़ाना क्या जरुरी है ?- उनके जमाने में तो लड़कियां चिट्ठी पत्री लिखना -पढ़ना जन लें -बस यही सबसे बड़ी  योग्यता थी...उनकी बेटियां भी तो बी ए तक पढ़ीं हैं ,तो क्या सुखी नहीं हैं ? , ,स्निग्धा अगले साल बाईस की हो जायेगी , बी ए तक पढ़ाकर कहीं शादी -ब्याह कर दो बस ,''दादी भुनभुना रही थीं ,
पापा तो गुस्से से पैर पटकते हुए ऑफिस चले गए थे,गुड्डू भी रो धोकर सो चुका था बस ,माँ आंगन में भूखी प्यासी बैठी दादी को मना मनाकर हार चुकी थी - -वास्तव में गुड्डू की बात को लेकर दादी का नाराज होना तो एक बहाना मात्र था -वह नहीं चाहती थीं कि स्निग्धा कि पढ़ाई पर ज्यादा खर्च हो ,--छह साल बर्बाद होंगे सो अलग ,तब कहीं जात बिरादरी का लड़का मिले न मिले -दहेज़ के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे ! , ,''दादी के अपने तर्क थे ,जिसके सम्मुख माँ ,पापा,स्निग्धा के सारे तर्क बेकार हो चुके थे ,-पूरा वातावरण शांत पर तनावग्रस्त था...
सुबह के आठ बज रहे रहे थे -पापा चाय पीकर अख़बार पढ़ रहे थे ,स्निग्धा भी वहीँ बैठकर अपना प्रोजेक्ट पूरा कर रही थी -हृदय का बड़ा चित्र बनाकर ,रक्त संचरण दर्शाता हुआ एक मानव शरीर पेंट कर रही थी , , ,पता नहीं दादी कब धीरे से आकर पास बैठ गई थी -नाराज तो थी ही बीच बीच में झुक कर स्निग्धा के चित्र को भी देख रहीं थी -कौतूहलवश, जब रहा नहीं गया तो पूछ बैठी --''ये क्या है ?स्निग्धा ने बिना सिर उठाये जवाब दिया --''ये दिल है दादी ,ये ही धड़कता है तो हम जिन्दा रहते हैं ''
''ये लाल नीली सी डोरियां सी क्या है ''-स्निग्धा ने बताया कि ये नलियां हैं ,जो लाल रंग की हैं -साफ़ खून वाली हैं ,और नीली गंदे खून वाली , ,इस तरह दादी सवाल पूछती गई और स्निग्धा एक कुशल अध्यापक की तरह जवाब देती गई  - -दादी की उत्सुकता चरम पर थी --''तू ये ही सब पढ़ेगी बिटिया ?'' , , ,
''हाँ दादी जब तेरा दिल बीमार होगा तो मैं ही तो उसे ठीक करुँगी - -सोच दादी ,बाहर के डॉक्टर कितना पैसा ले जाते हैं ,जब घर का ही डॉक्टर होगा तो पैसे बचेंगे -है ना ?''
दादी खिलखिलाकर हंस पड़ी --''तो तू शादी करेगी न हमारी मर्जी से ?'' ,पहले तो स्निग्धा समझी नहीं पर बात समझ में आते ही दादी के गले में बाहें दाल दीं --''हाँ दादी '',
आज स्निग्धा पापा के साथ नामांकन के लिए जा रही थी दादी का आशीर्वाद लेकर ,बेटे बेटियों के फर्क वाली रूढ़ियों की दीवार तोड़कर  , , ,एक नई शुरुआत के साथ -  गुड्डू भी शरारत वश मुस्करा रहा था , , , 



पद्मा मिश्रा
जमशेदपुर 
1 Response
  1. pallavi Says:

    boht hi achhi kahani hai. . .prernadayak


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