बेटियाँ
बाबुल से आती चिट्ठी
खुश होती रोती भी
बाबुल की यादो को बाटती
सुनाती सखी सहेलियों में ।
चिट्ठियों को संभाल कर रखती जाती
बाबुल की जब आती याद
तो पढ़ कर
संतोष कर लेती ।
डाकिया और चिट्ठी का होता था
हर पल इंतजार
वो भी एक जमाना था ।
अब ये भी एक जमाना है
जिनकी बेटियाँ है
बस उनके ही
बाबुल से आता है
फोन /मोबाईल पर लिखा
सन्देश ।
बाबुल भी क्या करे ?
बेटिया भ्रूण हत्याओ से हो गई
दुनिया में कम
इसलिए डाकिया /चिट्ठी और बाबुल
हो गए है अब गुमसुम ।
भ्रूण हत्याओ को
रोकना होगा ताकि बेटियां
डाकिया /चिट्ठी और बाबुल की
यादों को पा सके
और पा सके
हर बाबुल अपनी बिटियाँ का प्यार ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
125, शहीद भगत
सिंग मार्ग
मनावर जिला -धार (म प्र )
बहुत खूब ...सुन्दर
बेटियाँ वास्तव में हमारे समाज के लिये गहरे विमर्श का विषय है!
संजय जी को बधाई!!