रात बुझ गयी
तेरी बाहों में,
तुझे ढूंढती रह गई
अपनी बाहों में
जागती रही
तुम्हारे इन्तजार में ,
सुबह हो गई
वो कसमें, वो वादें,
सब रह गए सपने,
अब तुम ही नहीं रहे ,
जब मेरे अपने
दो कदम साथ चलकर
ठुकरा दिया तुमने
मेरे इन कोमल हाथों को
कठोर बना दिया तुमने ,
यहाँ से दोनों की
राहें अलग हो गई,
न तुम मेरे , न मैं तुम्हारी ,
कोई अगर मुझसे पूछे
तुम्हारे बारें में
कहूँगी एक लम्हा था ,
जो बीत गया
वक़्त के साथ यह रिश्ता भी
पीछे छूट गया ,
इस नादान दिल को
कैसे समझाऊ,
जिसने हाल-ऐ -दिल
तुझसे प्यार किया
छोड़ दिया तुमने उन राहों पर ,
जहाँ समेटती रही आंसू ,
कितना बड़ा कलेजा तुम्हारा,
जो भूल गए मुझे,
और मैं भी भूल जाऊंगी
निर्लज्जता से
तुम्हारी उन सैकंडो रात को
जो काटी थी तुमने जाग कर
मुझे सुलाने के लिए...
गीता गाबा,
नई दिल्ली
बहुत बढ़िया ..हर्दिक बधाई