बीता सुख- दुःख में हर दिन,
साल दो हज़ार तेरह का.
चंचल तितली सा
कभी मनमोहक पंखुरियों सा,
हर दिन दो हज़ार तेरह का.

अच्छी- बुरी अफरा- तफरी से
हुआ हमारा आमना-सामना.
आगे भी तत्पर रहने को,
है हमारे मन में कामना.

लिए सपनों का विशाल भंवर,
हम घुमे गलियां और डगर.
मनोकामना है हमारी इश्वर से,
दिखा दे अपनी करूणा का असर.

नववर्ष में शुरुआत नयी,
आओ करें सब होक एक.
लेकर मन में सच्ची भावना,
हो जाएँ यहाँ सब नेक.
सेवा को ही धर्म बनालें,
और कर्म से नाता जोड़ें.
तलवार नही कलम का शस्त्र,
लेकर जंग-ए-लान करें.

विजयी फिर सब लोग होंगे,
छोटे ना कोई बड़े होंगे.
लालच मोह और माया के,
दानव दल पृथ्वी से दूर होंगे.
तब झूम के पृथ्वी माता भी,
नववर्ष ख़ुशी से मनाएगी.
और दो हज़ार चौदह के,
हर त्यौहार में नाचे- गाएगी.

नववर्ष मंगलमय हो आपका,
दुआ है गंगा के पवित्र धरा की.
चाँद के चमकती रौशनी की,
सूरज की मीठी लाली की.
हर दिन हो सोने जैसा आपका,
रातें हो जैसे चांदी की.
पल पल बीते हीरों सा सुखमय,
मोती जैसे फूल सागर के बाँहों की.

सन्देश ये चारों दिशा से आई,
अतुल्य प्रकृति ने ली अंगड़ाई.
नवनिर्माण की आशा में,
मेरी शुभकामना ने पंख लगाई.
एक बार फिर हार्दिक बधाई,
नववर्ष की सबको हार्दिक बधाई..


भावना मिश्रा
मधेपुरा
2 Responses

  1. Unknown Says:

    happy new year , a good creation


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